प्रायः अतीत की स्मृतियों में वृद्ध और भविष्य की कल्पनाओं में युवा और बालक खोए रहते हैं।वर्तमान ही वह महाकाल है जिसे साधे बिना और जिसमें समाहित हुए बिना यथार्थ के दर्शन नहीं हो सकते हैं। वर्त्तमान में रहना और वर्त्तमान को जीना ही अच्छे स्वास्थ्य और आत्मजागृति की निशानी है।प्रायः हम देखते हैं कि अधिकतर लोग स्मृतियों में गोते लगा रहे होते हैं।मैं ऐसा था, मैं वैसा था।मेरे साथ ऐसा हुआ, वैसा हुआ अगैरह वगैरह।और कुछ ऐसे भी होते हैं जो सदा स्वप्निल दुनिया में डूबे रहते हैं।मैं यह बनूंगा तो मैं वह बनूंगा।जो वृध्द होगए हैं,वे अपने अतीत की स्मृतियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं।हमारे समय में ऐसा होता था।हमने कितने कष्ट सहे हैं, कितने दुख भोगे हैं तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो।स्मृति और कल्पना से पार हुए बिना वर्त्तमान में समावेश पाना असंभव है। समस्त आध्यात्मिक प्रक्रिया में वर्तमान की महत्ता सर्वाधिक है।वर्तमान की स्वीकार्यता से ही अस्तित्व बोध होता है।
यह सच है कि स्मृति और कल्पना ऐसे दो तत्व हैं जो हमें वर्त्तमान में उपस्थित ही नहीं होने देते हैं।लेकिन स्मृति और कल्पना से पूर्व यदि हम सेल्फ़ अवेयरनेस को प्राथमिकता दे दें तो स्मृति और कल्पना हमारे लिए संजीवनी बूटी का काम कर सकती हैं।आत्मजगरुकता का अर्थ है अपने अनौखे अस्तित्व को स्वीकारना ।अस्तित्व की प्रकृति कभी भी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं रहती है।अस्तित्व का अर्थ है सत्ता का भाव।किसकी सत्ता?चेतना की सत्ता।जहां भी संकल्प है,पुरुषार्थ है, परिणाम की अभिलाषा है, वहां-वहां चेतना है, जीवन का प्रवाह है।
जीवन के प्रवाह को सतत गतिमान बनाए रखने के लिए आवश्यक है अपनी कल्पनाशीलता के पंखों को उड़ान भरने में चेतनापूर्ण प्रयासों को भरपूर् आदर देना।।धरा पर कोई भी सुप्रसिद्ध रचना हकीकत में आने से पहले कल्पना में ही प्रस्फुटित होती है। कल्पना को पंख मिलते हैं स्वयं पर भरोसे करने से।स्वयं पर विश्वास के उदित होने में कल्पना की ऊर्जा प्रवाहित होती है।विश्वास भी तुरंत फुरन्त वाली प्रक्रिया नहीं है।कई अड़चनों और अवरोधों से गुजरने पर ही विश्वास की मरुभूमि उर्वरा हो पाती है।कल्पना का अर्थ है मानसिक रचना।इस मानसिक रचना को ही आज ब्लूप्रिंट कहा जाता है।किसी मूवी की डायरेक्टर हो या फिर किसी पुल का इंजीनियर, किसी दवा के बनाने वाले वैज्ञानिक हों या फिर कथा-उपन्यास के लेखक, कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील हों या फिर बिल्डिंग का नक्शा तैयार करने वाले आर्किटेक्चर हों, चाहे फैशन डिजाइनर हों या फिर बड़े-बड़े स्पीकर,टीचर, प्रोफेसर,आर्टिस्ट- सभी को इमेजिनेशन की पॉवर पता है।
वस्तुतः कल्पनाशीलता ऐसी जादुई छड़ी है, जो हमें दुख में सुखी और सुख में दुःखी रखने की क्षमता रखती है।कल्पनाशीलता का अर्थ है भविष्य को वर्तमान की आंखों से तराशने की क्षमता।कल्पना भी एक तरह की प्रतिभा ही।कल्पना के पीछे स्मृतियों के संस्कार भी मौजूद रहते हैं।अतीत की अनुभूति की अपनी अहमियत है।अतीत की स्मृति भी कल्पना को पंख देती है।स्मृति में आपकी कल्पना के उदाहरणों की भरमार से यह मूल्यांकन तो हो गया होगा कि कैसे अपनी इस अनौखी शक्ति के बदौलत कई अनेकों मुश्किलों से मुक्ति मिली है।स्मृति स्वयं पर विश्वास का कारण सकती है।इसके विवेक की बहुत आवश्यकता है।
विवेक का मतलव है (Conscienc) अन्तरात्मा की आवाज ।जो आपको अंदर से सदा जागृत रखे ,आपका मार्गदर्शन करें।व्यक्ति सही-गलत,अच्छे-बुरे, सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय तथा यश-अपयश आदि द्वंद्वों से मुक्त कर स्वयं के अस्तित्व बोध की प्रकृति से परिचित हो सके। अपने अस्तित्व की अनुभूति का अर्थ है स्वयं की सत्ता को स्वीकारना ।
आज के धार्मिक क्रियाकलापों में ईश्वरीय सत्ता का उपदेश हद से ज्यादा सुनने को मिलता है, भले ही ईश्वर उन उपदेशकों से ईश्वर कोसों दूर क्यों न हो ?ईश्वरीय सत्ता से पहले यदि स्वयं के अस्तित्व का बोध नहीं हैतो फिर यह सब एक नशे जैसे ही है।वह सब पर थोपना चाहता है। जो मैं करता हूं ,वही ठीक है।अपने सिवा कोई भी उसे कोई भी ठीक नहीं जंचता है। सब में उसे खामियां ही खामियां नजर आती है।सबको सुधारने में लग जाता है।भूल जाता है कि उसके इस सुधारने के क्रम में वह टोंट कस रहा होता है।इसे लोगों को ठेस भी पंहुच रही है।सुधार से पहले वह स्वीकार हो। स्वीकार्यता का अर्थ है मानवीय गरिमा सर्वोपरि ।
-डॉ. कमलाकान्त बहुगुणा
बहुत ही सही ढंग से स्मृति और कल्पना का अन्वाख्यान .....
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