कहने को तो मनुष्य मरणधर्मा है।लेकिन अपनी हरकतों से तो ऐसा लगता है,मानो वह स्वयं को अमर मान चुका है।तभी तो उसे किसी का भी भय नहीं है।ऐसा अमरकाया वाला इंसान कभी दस रुपये तक के नमक को भी पांच सौ में बेचकर लाखों रुपये कमाने में सफल हो जाता है तो कभी ऑक्सीजन के सिलेंडर को ब्लैक करके करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे करने में लग जाता है।और कभी रेमिडिसिविर के इंजेक्शन की जमाखोरी से अरबपति बनने के सपने सजोए हुए होता है।
यह बिरादरी आज ही इस कॉरोना आपदा को अवसर में नहीं बदल रही है, बल्कि जब भी जहाँ आपदा आती है तो इन गिद्धों के झुंड के झुंड जल्दी से जल्दी वहाँ मंडराने लग जाते हैं।गिद्धों का काम ही है लाशों पर मंडराना।लेकिन आबकी बार दिल्ली में ये गिद्ध बहुतायत में मंडरा रहे हैं,जिससे इन पर सबकी नजर पड़ने लगी है।हद तो देखिए आज जब सबको संक्रमण से बचाव की बहुत ज्यादा जरूरत है तब भी कुछ मुर्दाखोरों द्वारा कॉरोना से मृत व्यक्तियों की लाशों पर चढ़ाई गई महंगी-महंगी शालें भी मार्केट में बेची जा रही हैं।मानवता को तारतार करने में ये थोड़ी भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं।जीवन रक्षक दवाइयों की जमाखोरी से लेकर आवश्यक खाद्य सामग्री की बढ़ती महंगाई आम आदमी की बिना कॉरोना के ही जान लेकर मानेगी।
बहुत पुरानी बात नहीं है।बस, सात-आठ साल पुरानी है केदारनाथ की त्रासदी।उस महाविपदा में भी इसी बिरादरी के
लोगों ने आपदा में अवसर पहचानते हुए भोजन और पानी की मनमानी कीमत फंसे यात्रियों से बसूली थी।आपदा में अवसर
ढूंढने वालों का इतिहास बहुत पुराना है।यूं तो एक अच्छे अवसर की तलाश में सभी
प्रोफेशन वाले चाहे पत्रकार हो,अध्यापक हो, डॉक्टर हो,इंजीनियर हो , बिजनिसमैन हो, प्रोपर्टी डीलर हो, वकील हो या फिर टैक्सी ड्राइवर या कोई और सबके सब रहते हैं।
अच्छे अवसर की तलाश कोई गुनाह नहीं है।लेकिन गुनाह तब जरूर बन जाता है जब आप दूसरे की मजबूरी में अपने लिए अच्छे अवसर की तलाश करते हैं।इसी वजह से जब कोई दूसरे की जान का सौदा करने लगता है फिर हर किसी की आत्मा रुदन करने लगती है,हर किसी की आत्मा दर्द से कराहने लगती हैं।ऐसे घृणित कृत्यों के कारण कोई कैसे मानवता को शर्मसार होने से बचा सकता है ?
यह सामाजिक सत्यता है कि कोई भी व्यक्ति ईमानदार तभी तक है,जब तक वह बेईमानी करते हुए नहीं पकड़ा जाता है या फिर उसे बेईमानी का अवसर ही उपलब्ध नहीं होता है।अवसरप्राप्त व्यक्ति के चरित्र का ही मूल्यांकन किया जा सकता है।सभी तरह की काला बाजारी में सरकारी दफ्तरों की भी भूमिका कम नहीं होती है।अगर यह सब नहीं होता तो फिर नकली माल का व्यापार धड़ल्ले से कैसे पूरे देश में होता? गौर करने वाली बात यह है कि इस देश में तो पांच साल तक मुख्यमंत्री पद रहने वाला व्यक्ति भी अपने पद से हटते ही टोंटी तक को उखाड़कर अपने साथ ले चलता है।फिर भला आम आदमी से हम किस आदर्श की उम्मीद कर सकते हैं ?विशेष कर तब जब इस देश के किसी प्रदेश का व्यक्ति गृहमंत्री रहते हुए अपने मातहत अधिकारी को सौ करोड़ का टारगेट सौंप देता हो।मंत्री हो या संतरी हर कोई रात-दिन अपनी आमदनी बढ़ाने की फिराक में हैं।अपनी आमदनी बढ़ाने का सपना देखने की किसी को कोई मनाही तो है नहीं।
एकदम सत्य कहा भ्राताश्री, वास्तव में इन तथाकतिथ गिद्दों को ऊर्जा
जवाब देंहटाएंवर्तमान विपक्ष द्वारा ही प्राप्त हो रही है!
एकदम सत्य कहा भ्राताश्री, वास्तव में इन तथाकतिथ गिद्दों को ऊर्जा
जवाब देंहटाएंवर्तमान विपक्ष द्वारा ही प्राप्त हो रही है!
-नन्द किशोर बहुगुणा
सच कहा है प्रिय अनुज आपने । आभार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने हेतु
जवाब देंहटाएंयही सच्चाई है
जवाब देंहटाएंठीक बात हरीश जी
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