72वां गणतंत्र दिवस और किसान आंदोलन
संविधान और विधान ग्रामर ऑफ एनार्की
गणतंत्र दिवस वह राष्ट्रीय पर्व है जो हमें यह स्मरण कराता है कि यह आजादी हमने बहुत कीमत देकर पाई है। यह आजादी तभी सतत रह पाएगी जब हम इसके संविधान की सुरक्षा भी करेंगे और अपने जीवन को उसके अनुरूप ढालेंगे भी। यह संविधान साढ़े पांच सौ से अधिक राज्यों से बने देश का है।
संविधान का तात्पर्य है देश के प्रत्येक नागरिक की खुशहाली के लिए गरिमापूर्ण अवसरों की तलाश। उदाहरण के अनुसार जैसे कोई भी नागरिक भूखा न सोए - यह है संविधान। और परिस्थिति तथा आर्थिक स्थिति के अनुसार उपाय करना है विधान । संविधान का अर्थ है देश के प्रत्येक नागरिक के लिए समाधान का पर्याय बनना ।
26 नवंबर 1949 को संविधानसभा में दिया गया डॉ.भीमराव अम्बेडकर का भाषण जरूर आज की परिस्थितियों को प्रतिध्वनित करता है। जिसे
ग्रामर ऑफ एनार्की के नाम से जाना जाता है। तब डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट चेतावनी के साथ
चेताया भी था कि जहां संवैधानिक विकल्प उपलब्ध हों वहां असंवैधानिक तरीकों को उचित नहीं
ठहराया जा सकता है। यह तरीका केवल ग्रामर ऑफ एनार्की के अलावा कुछ और नहीं है।हम इसका
जितनी जल्दी परित्याग करेंगे उतना बेहतर होगा।
ऐतिहासिक घटनाओं का हवाला
देते हुए उन्होंने यह भी बताया था कि बड़ी कठिनाई से हासिल हुई आजादी को हल्के में लेने
वाले तत्वों को आगाह करते हुए कहा था भारत
देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या फिर वे अपने पंथ को देश से ज्यादा महत्व देंगे ?
मैं नहीं जानता अगर उन्होंने पंथ को देश से अधिक महत्व दिया तो हमारी आजादी न सिर्फ खतरे
में पड़ जाएगी बल्कि शायद हम उसे दूसरी बार भी खो सकते हैं।
किसान आंदोलन के नाम पर
पंडितों को देख लेने की बात ,बक्कल उतार देंगे , हमने इंदिरा को नहीं छोड़ा तो मोदी क्या चीज है, मोदी मर जा तू , लाठी और डंडे साथ ले आना , समझ गए न, आदि बयान और नारों को हल्के में लेना और संविधान की मर्यादा की बात करना जरूर किसी
बड़े षड्यंत्र की तरफ भी संकेत करता है।
हद तो तब हो गई जब ट्रेक्टर रैली में ट्रैक्टर, लाठी और तलवार से रास्ते में आने वाली प्रत्येक चीज को नुकसान पंहुचाते हुए आगे बढ़ रहे थे।सार्वजनिक संपत्ति और पुलिस कर्मियों पर उनके गुस्से को भारत की आजादी और भारतीय गणतंत्र विरोधी मानसिकता वालों ने ही भड़काया है।
मुझे यह स्वीकार करते हुए कोई अफ़सोस नहीं है कि किसान आंदोलन के पीछे बिचौलियों और आढ़तियों का घृणित चेहरा है। सुनने में तो यहां तक आरहा है कि पंजाब के किसान नेता हैं जो पूरे पंजाब की फसल को फिक्स दर पर खरीदते हैं और उसी अनाज को सरकार द्वारा निर्धारित उच्च दाम में FCI को बेच देते हैं । यही अनाज FCI के मिलीभगत से गोदाम में सड़ा दिखा कर उसकी नीलामी करते हैं, और फिर उसे कम दाम पर पुन: खरीदकर अपनी शराब फैक्ट्रीयो में भेज कर शराब तथा बियर बनाते हैं । पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा अत्यधिक रसायनों का प्रयोग कर उगाई गई जहरीली फसल स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। सरकार को यह भी पता लगाना चाहिए कि इन लोगों ने कोई मेडिकल कम्पनी तो नहीं खोली हुई है, जो कैंसर जैसी बीमारियों के लिये दवाइयां बनाती हों? अत्यधिक कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से उगाई फसलों के कारण ही देश में कैंसर जैसी दर्दनाक बीमारियां जोरों से अपने पांव पसार रही हैं ।
गिनती के पंद्रह किसान नेताओं को छोड़
दें तो बाकी सारे मंडी के दलाल मिलेंगे। किसानों के सबसे बड़े दुश्मन ये किसान नेता ही हैं ।
भारत सरकार के तीन कृषि कानूनों से इन नेताओं के सारे घोटाले बन्द हो जायेंगे कहीं इसीलिए तो यह विरोध नहीं चल रहा हो? इस संदेह का कारण भी साफ है सरकार की सुनेंगे नहीं सुप्रीम कोर्ट की मानेंगे नहीं है।बस एक ही रट कृषि कानून को वापिस लो, जबकि सरकार डेढ़ साल तक कानूनों को स्थगित करने की मंशा व्यक्त कर चुकी है।
गणतंत्र का पर्व देश का
राष्ट्रीय पर्व है। इस पावन पर्व के दिन विरोध प्रदर्शन की जिद स्वाभाविक संकेत देरही है
कि दाल पूरी ही काली है। कहीं यह आजादी और भारतीय
गणतंत्र पर सुनियोजित हमला तो नहीं है।
अब जिम्मेदारी लेने की
बजाय आंसुओं से भावनात्मक ड्रामा द्वारा जातीय आकर्षण की भी रोटियां सेकनी शुरू हो चुकी हैं। हर पाशे को
बहुत ही चालाकी से फेंकने में माहिर लोगों के लिए यह आंदोलन पवित्र संगम बन गया है।योगेंद्र
यादव सदृश जो राजनीति में जनता द्वारा पूरी तरह से नकारे गए हैं वे आदतन आंदोलन में शामिल होकर
अरविंद केजरीवाल की तरह अपने उद्भव की आकांक्षा पाले लोगों के लिए पिछले साल सीएए के खिलाफ महातीर्थ तब शाहीनबाग था तो आज सिंधु बॉर्डर जिसे राहुलगांधी शम्भू
बॉर्डर कह गए।
पंजाब में पंचायतों द्वारा असंवैधानिक फ़रमान दिया जाना कि घर से एक सदस्य का अनिवार्यरूप से आंदोलन में शरीक होने के लिए। अन्यथा समाज से बहिष्कार किया जाएगा। जरूर कुछ अनहोनी की भी मंशा जाहिर कर रहा है।
अंग्रेजो की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ाते हुए खालिस्तान की मांग को इसी कड़ी में कुछ गणतंत्र विरोधी देख रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़कों में हिंसा करने वाले दुःखी तो इस बात से भी थे कि 370 हटाने और राममंदिर का कार्य का शुभारंभ बिना खून खराबे के हो कैसे गया? कोरोना नियंत्रण और वैक्सीन का निर्माण मोदी सरकार कैसे कर सकती है। ये तो ताली और घंटी बजाने वालों की सरकार है। उनका इरादा कृषि कानूनों का विरोध नहीं था,बल्कि देश में दंगे और अस्थिरता था। तभी उन्हें आश्चर्य है कि तिरंगे के अपमान पर पुलिस ने गोली क्यों नहीं चलाई ? पुलिस का अप्रतिम धैर्य देखकर उन्हें सैल्यूट करने का मन प्रत्येक देशप्रेमियों को करता रहेगा। पुलिस ने खुद पिट कर पूरे पंजाब को जलने से बचा लिया है।
- डॉ. कमलाकान्त बहुगुणा
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