बुधवार, 14 अप्रैल 2021

घिसटती पिसती पहाड़ की नारियां



उत्तराखंड भी दूसरा बिहार बन सकता है ।यदि समय रहते  सही रणनीति और नेतृत्व  का अनुसन्धान नहीं किया गया। वैसे भी पहाड़ की संस्कृति में ख और ब का महत्त्व बहुत ज्यादा है। अस्पृश्यता तो वहां भयानक बीमारी है इसके विरोध में तो कोई  पहाड़ में उतर ही नहीं सकता।साथ ही नए नए नौजवानों की राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं का  मुकाम AAP  भी हो सकती है। पहाड़ के युवक या तो फौज में या फिर होटल में ज्यादा सरीख होते हैं।
उच्चशिक्षा का आकर्षण  नशे की लत में बौना ही है।कोई बिरले ही अपने माँ बाप की तपस्या का सुपरिणाम दे पाते हैं।वैसे भी पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आती ही कितनी है।पलायन तो होगा ही जब रोजगार नहीं मिलेंगे।युवा अवस्था में ही बुढ़ापा  झलकता है चहरे पर।कभी जो ईमानदारी थी पहाड़ों में वो भी रफूचक्कर।आज भी जो नहीं बदला पहाड़ में वह पहाड़ की महिलाओं के संघर्ष की जीवन गाथा।वंदनीय तो पहाड़ों की नारियां हैं जो घिसटती पिसती रहती हैं फिर भी उप्फ तक नहीं करती।





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