उपसर्ग पूर्वक विच्लृ पृथग्भावे धातु से विवेक शब्द बना है। विवेक
वह दिव्य तत्त्व है जो व्यक्ति को सही-गलत,अच्छे-बुरे, सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय तथा यश-अपयश आदि द्वंद्वों
से मुक्त कर स्वयं के अस्तित्व बोध की प्रकृति से परिचय कराता है। अपने अस्तित्व की
अनुभूति का अर्थ है स्वयं की सत्ता को स्वीकारना । बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है
कि आज के सारे धार्मिक क्रियाकलापों में ईश्वरीय सत्ता का उपदेश हद से
ज्यादा सुनने को मिलता है, भले ही ईश्वर उनसे कोसों दूर क्यों न हो ? लेकिन ईश्वरीय सत्ता से पहले
क्या स्वयं के अस्तित्व का बोध अनिवार्य नहीं है। गायत्री मंत्र में भूर्भुवः स्व: में भू: का अर्थ अस्तित्व
ही है।यह अस्तित्व किसका? अगर छोटे बच्चे को असली कार गिफ्ट में देंगे तो उसका
परिणाम क्या होगा यह बताने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। बिना नर्सरी व प्राइमरी
तथा दसवीं आदि क्लास पास किए पीएच.डी कैसे कर सकता हैं कोई ? ठीक
ऐसे ही अपने अस्तित्व को जाने बिना ईश्वर का अस्तित्व कैसे जान सकते हैं।
विवेक ही वह श्रेष्ठ संपदा है जो इंसान को अपने अस्तित्व की सही झलक दिखा
सकता है। विवेक अर्थात् विवेचना । सही और गलत का बोध विवेक कहलाता है। हंस के पास दूध
और और पानी को अलग करने की प्रतिभा है। इसे ही विवेक कहते हैं। अपने व्यवहार को नियंत्रित
करने की अद्भुत क्षमता है विवेक में।अंतरात्मा की आवाज को सुनने के लिए विवेक बहुत
अनिवार्य है। विवेक ही हमारे विचारों के पीछे छिपे मनोभावों का सही से विश्लेषण कर पाता
है।
मैडम डे स्टेल ने कहा था – अंतरात्मा की आवाज
इतनी धीमी है कि इसे दबाना आसान है । परंतु यह इतनी स्पष्ट
है कि इसे पहचानने में गलती करना असंभव है।
जैसे शरीरविज्ञान के सभी आयामों की सही शिक्षा एक अच्छे खिलाड़ी बनने के
आवश्यक है, जैसे मन के सभी आयामों का ज्ञान कुशाग्र विद्यार्थी के लिए आवश्यक है, वैसे ही अपने
अस्तित्व बोध की प्रकृति से परिचित होने के लिए विवेक की सही शिक्षा अनिवार्य है।
विवेक के शिक्षण-प्रशिक्षण क्रम में बहुत अधिक एकाग्रता, संतुलित अनुशासन तथा
सतत ईमानदार जीवन की आवश्यकता होती है।साथ ही नियमित रूप से प्रेरित करने वाले आलेख
व साहित्य पढ़ना, उत्तम विचार और विशेषतः अंदर की धीमी आवाज को सुनना और उसके अनुरूप जीना
शामिल है।
यह जरूर याद रखना होगा कि जिस तरह से व्यायाम का अभाव और फ़ास्ट फ़ूड किसी
भी खिलाड़ी की क्षमता को बर्बाद कर सकता है, उसी तरह घटिया , अश्लील या पोर्नोग्राफिक
चीजें अंतर में अंधेरा ला सकती है, जो हमारी उच्चतर अनुभूतियों को सुन्न कर देती
है।
क्या सही है और क्या गलत है? इस विवेक के स्थान पर क्या मैं पकड़ा जाऊंगा यह सामाजिक अवधारणा अधिक प्रबल होती है। किसी पाश्चात्य विचारक ने कहा है कि पशु बने बिना आप अपने भीतर के पशु के साथ नहीं खेल सकते हैं,सच के अधिकार को जब्त किए बिना झूठ के साथ नहीं खेल सकते हैं और अपने मस्तिष्क की संवेदनशीलता को खोए बिना क्रूरता के साथ नहीं खेल सकते हैं। जो व्यक्ति अपने बगीचे को साफ-सुथरा रखना चाहता है, वह खर पतवार के लिए किसी क्यारी को सुरक्षित नहीं रख सकता है।
विवेक के अभाव में हम रेंगने वाले जानवरों की भांति जीते हैं। फिर हम सिर्फ जिंदा रहने के लिए और संतति पैदा करने के लिए जीते हैं। तब हम जी नहीं रहे होते हैं अपितु हमारे द्वारा जिया जा रहा होता है। विवेक हमें सदा सक्रिय, जागृत और विकसित करता है। तभी हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आस्वादन करते हैं और अंदर से सुरक्षा, बुद्धि , साहस , ऊर्जा और मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। यही हमारे अस्तित्व बोध की प्रकृति भी है।
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