शिथिलीकरण और योगनिद्रा का वैज्ञानिक स्वरूप
मानवीय शरीर के समग्र व्यापार का आधार है मांसपेशियां।इंसान का उठना-बैठना, लिखना- पढ़ना, दौड़ना,कूदना,फेंकना,बातें करना तथा श्वास-निश्वास आदि सभी क्रियाएं मांसपेशियों के संकोचन पर निर्भर हैं।मानवीय व्यापार के क्रम में सोचना और विचारना मानसिक क्रिया के अंतर्गत आते हैं।विचारों की मानसिक प्रक्रिया में भी मांसपेशियों के संकोचन की महत्वपूर्ण भूमिका है।
मानव शरीर का अधिकांश भाग मांसपेशियों से ढका होता है। मांसपेशियां शरीर के कुल भार का लगभग 40% भाग बनाती है।इनका अधिक संबंध संचलन या गति से होता है। यह अंगों मे गति उत्पन्न करता है। शरीर का ऊपरी हिस्सा पूर्ण रूप से मांसपेशियों से ढका रहता है। इसी कारण शरीर सुंदर व सुडौल दिखाई देता है। Muscular system एक organ system है।
मांसपेशी प्रणाली वास्तव में क्या है?
हमारा यह शरीर मुख्यरूप से मांसपेशियों से पर निर्भर है।वे मांसपेशियां तीन प्रकार की होती हैं। 1- skeletal (कंकाल की मांसपेशी) जो हमारी हड्डियों को कवर करती है। 2- visceral (चिकनी मांसपेशी) जो रक्तवाहिकाओं और कुछ अंगों, जैसे आंत और गर्भाशय, को खींचती है। 3- cardiac muscles (हृदय की मांसपेशियों) जो केवल हृदय में पाई जाती है)
ये तीनों तरह की मांसपेशियां लंबी कोशिकाओं से बनी होती हैं,जिन्हें muscle-fiber कहा जाता है। मांसपेशियों में contractility व excitability का गुण होता है । ये शरीर को strength, balance, posture movement व heat प्रदान करती है। मानव शरीर मे 600 से अधिक muscles होती है।
शरीर के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जिनकी गति मांसपेशियों की प्रणाली द्वारा नियंत्रित नहीं होती है, वे हैं शुक्राणु कोशिकाएं, हमारे वायुमार्ग में बाल जैसे सिलिया और कुछ सफेद रक्त कोशिकाएं।
मांसपेशी प्रणाली का कार्य क्या है?
हम जब भी एक कदम उठाते हैं तो 200 मांसपेशियां हमारे पैर को ऊपर उठाने के लिए एकजुट होकर काम करने लगती हैं।इसी एकजुटता से वे इसे आगे बढ़ाती हैं और इसके क्रम को भी सेट करती हैं।650 से अधिक मांसपेशियों का यह नेटवर्क शरीर को कवर करता है।जिसके कारण हम यह सब कार्य कर पाते हैं।
मांसमांसपेशी प्रणाली के मुख्य कार्य
1. गतिशीलता – Mobility
2. स्थिरता – Stability
3. आसन – Posture
4. परिसंचरण – Circulation
5. श्वसन – Respiration
6. पाचन – Digestion
7. पेशाब – Urine
8. प्रसव – Childbirth
9. विजन – Vision
10. अंग सुरक्षा – Organ Protection
11. तापमान विनियमन – Temperature Regulation
मांसपेशियों के संकोचन का स्वरूप-
मांसपेशियों का संकोचन स्नायुप्रणाली द्वारा नियंत्रित होता है।स्नायुप्रणाली मस्तिष्क और मेरुदंड में शक्ति को निर्मित करती है।यह शक्ति नाड़ियों द्वारा शरीर के प्रत्येक हिस्से में पंहुचती है।इनमें शरीर को कवर करने वाली मांसपेशियां भी शामिल हैं।
यह स्नायविक शक्ति संवेग सदा नाड़ियों के पथ से प्रवाहित होती है।जब भी यह शक्ति किसी भी मांसपेशी में प्रवेश करती है तो उस जगह पर संकुचन होना लाजिमी है।संकुचन का क्षेत्र पंहुची हुई शक्ति पर निर्भर है।मांसपेशियों का संकुचन स्नायुवेग की प्रबलता के अनुपात पर होता है।स्नायुवेग विद्युत सदृश गुण वाले होते हैं।
हमारे शरीर में मस्तिष्क और मेरुदंड से लेकर मांसपेशियों तक ,फिर ज्ञानेन्द्रियों से लेकर मस्तिष्क और मेरुदंड तक नाड़ियों के मार्ग में विद्युत धाराएं लगातार प्रवाहित होती हैं।ये विद्युत धाराएं साधारण विद्युत धारा की तरह गति नहीं करती हैं।इनकी गति प्रति सेकिंड केवल चालीस गज से लेकर सौ गज तक होती है।ये विद्युत धाराएं मनुष्य की चेतना में भी नहीं प्रविष्ट होती हैं।
स्नायुसंवेग की विद्युत का पता सबसे पहले सन् 1842 में लगा था।लेकिन इसे व्यक्त करने वाले यन्त्र को तैयार करने में एक शताब्दी का समय लगा था। डॉ. जैकाब्सन ने यह यंत्र बनाया था।
मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में अपनी स्नायविक शक्ति बहुत अधिक मात्रा में व्यय करता है।हमें कितनी स्नायविक ऊर्जा व्यय करनी चाहिए- यह जानना हमारे लिए बहुत आवश्यक है।अपने कार्यों में व्यस्त डॉक्टर,वकील, व्यवसायी,राजनेता या फिर अधिकारी के कार्यों का अवलोकन करना चाहिए।इन्हें प्रतिदिन अधिक व्यक्तिओं से मिलना होता है।प्रत्येक की समस्या अलग है और उन्हें समाधान भी तत्काल चाहिए।
इन डॉक्टर ,वकील, व्यवसायी, राजनेता और अधिकारियों को हर नए व्यक्ति के कारण बार-बार शक्ति रूपी बिजली का बटन दबाना पड़ता है और छोड़ना पड़ता है।
हम जिस तरह से जीवन यापन कर रहे हैं ,उसके कारण हमारे शरीर के डाइनेमो को प्रायः अविराम सक्रिय रहना पड़ता है।इसीलिए हमारी स्नायुओं को तनाव की उच्चतम अवस्था में रहना पड़ता है।जिस कारण हमारी मांसपेशियां स्वाभावतः संकुचित हो जाती हैं।
वैज्ञानिक परीक्षणों में प्रमाणित हो चुका है कि आवश्यकता से अधिक कार्य करने वाले व्यक्ति की न तो स्नायु नींद की अवस्था में भी शांत होती हैं और न ही मांसपेशियां शिथिल हो पाती हैं।बिना विश्राम के मशीनें भी कार्य नहीं कर सकती हैं।मशीनें आराम नहीं मिलने से जल्दी खराब हो जाती हैं।इसी तरह जो लोग स्नायविक विश्राम करना नहीं जानते हैं उन्हें स्नायविक रोगों का शिकार होना पड़ता है।
स्नायु दुर्बलता से आज धनी लोगों में अजीर्ण, कोष्ठबद्धता, अनिद्रा, रक्तचाप में वृद्धि, नपुंसकता और उन्माद ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं।इसका एकमात्र कारण है -बिना विश्राम के लगातार आवश्यकता से अधिक स्नायविक शक्ति को व्यय करना है।
स्नायु दुर्बलता का समाधान -
क्या आज के समय हम स्नायविक तनाव पैदा करने वाले कार्यों से अपना पिंड छुड़ाकर अपनी स्नायुओं को आराम दे सकते हैं? क्या यह सब सम्भव है?
सुखपूर्ण भविष्य के लिए शरीर को बराबर तनाव की अवस्था में रखने से परहेज तथा समय-समय पर विश्राम देना बहुत आवश्यक है।बहुत से डॉक्टर स्नायुविकार से पीड़ित को आराम तथा उसकी मांसपेशियों को विश्राम दिला कर उसे रोग मुक्त करते हैं।परन्तु मांसपेशियों को शिथिलीकरण के बिना आराम करने से रोगी को विशेष लाभ नहीं मिल सकता है।
रोगी चारपाई पर लेट तो जाता है लेकिन वह बराबर बेचैन रहता है।इसका कारण यह है कि उसकी नाड़ियों के मार्ग से विद्युत शक्ति लगातार मांसपेशियों की ओर प्रवाहित होती है,जिसके कारण नाड़ियों में बहुत अधिक तनाव और मांसपेशियों में संकुचन रहता है।
शिथिलीकरण की प्रक्रिया-
वस्तुतः जब तक शरीर की मांसपेशियों को पूर्ण विश्राम अर्थात् शिथिलीकरण नहीं किया जाता ,तब तक नाड़ियों के मार्ग से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा को रोका नहीं जा सकता है।शिथिलीकरण द्वारा शरीर की मांसपेशियों को पूर्ण विश्राम पंहुचा कर मांसपेशियों में विद्युत शक्ति के प्रवेश को पूरी तरह से रोका जा सकता है और नाड़ियों को पूरा आराम पंहुचाया जा सकता है।
डॉ.जैकाब्सन ने भी शरीर की मांसपेशियों का शिथिलीकरण का तरीका बताया है।सबसे पहले पीठ के बल चारपाई पर लेट जाएं।फिर धीरे-धीरे सजगता के साथ शरीर के किसी अंग विशेष की मांसपेशियों को सिकोड़ना है।मांसपेशियों के संकुचन पैदा होने का ज्ञान अधिकाधिक अनुभव करने का प्रयत्न करना चाहिए।जब मांसपेशियों के संकुचन पैदा होने के ज्ञान प्राप्त करने में पूर्ण सफलता मिल जाती है तो फिर मंद संकुचन को रोकने का प्रयत्न करना चाहिए।यह अनुभूति आराम करने की दशा में भी मांसपेशियों में बनी रहती है।
बचे हुए संकुचन को दूर करना इच्छाशक्ति द्वारा सम्भव है। इसमें सफलता के बाद ही अवशिष्ट संकुचन समाप्त होता है तथा मांसपेशियों का भी शिथिलीकरण हो जाता है।
हम अपने शरीर का कोई अंग ,जिसे हम इस क्रिया में शामिल करना चाहते हैं।उदाहरण के रूप में हम अपना दाहिना हाथ ही लें।सबसे पहले हमें अपने दाहिने हाथ की मांसपेशियों को ढीला छोड़ना है या इसे संकुचित कर लें।एक तरफ जहां हमें अपने दाहिने हाथ की मांसपेशियों को संकुचित करना है तो दूसरी तरफ दाएं हाथ की मांसपेशियों में संकुचन पैदा होने के ज्ञान का अधिकाधिक अनुभव करने की कोशिश करनी चाहिए।इस प्रकार के संकुचन के ज्ञान में सफलता मिलने के बाद ही हमें मंद संकुचन को रोकना चाहिए।आराम करते समय में भी मांसपेशियों में संकुचन तो होता है ,लेकिन वह अपेक्षाकृत मंद अर्थात् कम होता है।मंद संकुचन ही अवशिष्ट संकुचन कहलाता है।
ऊपर बताए गए तरीके से मांसपेशियों के संकुचन को समझने के बाद ही हम जब कभी भी आराम या विश्राम की अवस्था में हों तो वहां भी हम मांसपेशियों के पूर्ण संकुचन को पैदा कर असीम ऊर्जा की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं।
भारतीय परम्परा में शिथिलीकरण-
शवासन और श्वास-निश्वास
शवासन के लिए पीठ के बल पर लेट कर पूरी तरह से अपने शरीर को ढीला छोड़ दें।आंखें बंद करके शरीर की समस्त मांसपेशियों के ढीलेपन और शिथिलीकरण का बोध करें।
शिथिलीकरण में उन्नति के बाद श्वास-निश्वास का लाभ-
मांसपेशियों के शिथिलीकरण के बाद श्वास-निश्वास पर ध्यान ।श्वास-निश्वास के संचालन में सामंजस्य स्थापित करें।नाभि तक श्वास-निश्वास की प्रक्रिया का पालन करें। श्वास-निश्वास की प्रक्रिया में सतर्कता और सामंजस्य समूची स्नायुप्रणाली में चमत्कार पैदा करता है।इस प्रक्रिया से न केवल हृदय और फेफड़ों को काफी शीतलता मिलती है बल्कि शरीर की समस्त मांसपेशियों का भी शिथिलीकरण हो जाता है।
शिथिलीकरण में श्वास-निश्वास के समायोजन से शिथिलीकरण की क्रियाएं भी आसान हो जाती हैं और श्वास-निश्वास पर भी अधिकार हो जाता है।इससे मांसपेशियों का शिथिलीकरण अपेक्षाकृत अधिक पूर्ण तथा श्वास-निश्वास को भी हम दिन-रात स्थिर रखने में सक्षम हो जाते हैं।
शवासन
शव का अर्थ होता है मृत।अपने शरीर को शव के समान बना लेने के कारण ही इस आसन को शवासन कहा जाता है। इस आसन का उपयोग प्रायः अपने दैनिक योगाभ्यास को समाप्त करने के लिए किया जाता है। यह एक शिथिल करने वाला आसन है और शरीर, मन और आत्मा को नवस्फूर्ति प्रदान करता है। परंतु यह आसन ध्यान लगाने के लिए नहीं है। क्योंकि इससे नींद आ सकती है।
शवासन की विधि-
जमीन पर दरी और उसके ऊपर कंबल भी बिछाना चाहिए।(गर्मियों में खादी की चादर बिछाएं।)फिर हम पीठ के बल लेटें और दोनों पैरों में डेढ़ फुट का अंतर रखें। दोनों हाथों को शरीर से 6 इंच (15 सेमी) की दूरी पर रखना है और हथेली की दिशा ऊपर की ओर रहेगी।
सिर को सहारा देने के लिए हम तौलिया या किसी कपड़े को दोहरा कर सिर के नीचे रख सकते हैं। इस दौरान हमें यह भी ध्यान रखना है कि सिर सीधा रहे।
शरीर को तनावरहित करने के लिए हमें अपनी कमर और कंधों को व्यवस्थित करना होगा। शरीर के सभी अंगों को ढीला छोड़ना है। हम अपनी आंखों को बड़े प्यार से बंद कर लें।शवासन करने के दौरान हमें अपने शरीर का कोई भी अंग हिलाना-डुलाना नहीं है।
हमें बहुत ही सजगता से अपने ध्यान को अपने गहरे और लंबे श्वास-निश्वास पर लगाना।श्वास-निश्वास की प्रक्रिया का नाभि तक सहजता से आदत में शुमार होना बहुत आवश्यक है।श्वास-निश्वास में अधिक से अधिक लयबद्धता निरंतरता के अभ्यास पर निर्भर होती है। श्वास-निश्वास के समय ऐसा अनुभव करें कि पूरा शरीर शिथिल होता जा रहा है। शरीर के सभी अंग शांत हो गए हैं।
इस दौरान हमें श्वास-निश्वास की सजगता को बनाए रखना है।हमें अपनी आंखें बंद ही रखनी है और आज्ञाचक्र (भौहों के मध्य स्थान पर) में एक दिव्यज्योति के प्रकाश को देखने का प्रयास करना चाहिए।
यदि कोई विचार हमारे मन में आए तो उसे हमें साक्षी भाव से देखना है।हमें उससे जुड़े नहीं रहना है।हम उसे देखें और उसे जाने दें। कुछ ही पल में हम मानसिक रूप से भी शांत और तनावरहित हो जाएंगे।
आंखे बंद रखते हुए इसी अवस्था में हम 10 से 1 (या 25 से 1) तक उल्टी गिनती भी गिन सकते हैं। उदाहरण के तौर पर "मैं श्वास ले रहा हूं 10, मैं श्वास छोड़ रहा हूं 10, मैं श्वास ले रहा हूं 9, मैं श्वास छोड़ रहा हूं 9"। इस प्रकार हम शून्य तक गिनती को मन ही मन गिन सकते हैं
यदि हमारा मन भटक जाए और हम गिनती भूल जाएं तो फिर से हम उल्टी गिनती आरंभ करें। श्वास की सजगता के साथ गिनती करने से हमारा मन थोड़ी ही देर में शांत हो जाएगा।
योग के अभ्यास के समय पर भी हम 1 या 2 मिनट तक शवासन का अभ्यास कर सकते हैं। हमें 20 से 30 मिनट तक शवासन का अभ्यास नियमित रूप से करना चाहिए। विशेषकर थक जाने के बाद या सोने से पहले।
शवासन के दौरान हम किसी भी अंग को हिलाएंगे नहीं। सजगता को साँस की ओर लगाकर रखें। अंत में अपनी चेतना को शरीर के प्रति लेकर आएँ।
अंत में दोनों पैरों को मिलाएं, दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ें और इसकी गर्मी को हम अपनी आंखों पर धारण करें। इसके बाद हम अपने हाथ सीधे कर लें और आंखें खोल लें।
शवासन के विविध लाभ-
शवासन एक मात्र ऐसा आसन है, जिसे हर आयु के लोग कर सकते हैं। यह सरल भी है।यदि शवासन को पूरी सजगता के साथ किया जाए तो इससे तनाव दूर होता है, उच्च रक्तचाप सामान्य होता है और अनिद्रा भी दूर होती है।
श्वास की स्थिति में हमारा मन शरीर से जुड़ा हुआ रहता है, जिससे कि शरीर में किसी प्रकार के बाहरी विचार उत्पन्न नहीं होते। इस कारण से हमारा मन पूर्णत: आरामदायक स्थिति में होता हैं, तब शरीर स्वत: ही शांति का अनुभव करता है। आंतरिक अंग सभी तनाव से मुक्त हो जाते हैं, जिससे कि रक्त लसंचार सुचारु रूप से प्रवाहित होने लगता है। और जब रक्त सुचारु रूप से चलता है तो शारीरिक और मानसिक तनाव घटता है। विशेषकर जिन लोगों को उच्च रक्तचाप और अनिद्रा की शिकायत है, ऐसे रोगियों के लिए शवासन बहुत लाभदायक है।
शरीर जब शिथिल होता है, मन शांत हो जाता है तो हम अपनी चेतना के प्रति सजग हो जाते हैं। इस प्रकार हम अपनी प्राण ऊर्जा को फिर से स्थापित कर पाते हैं। इससे हमें अपने शरीर की ऊर्जा पुनः प्राप्त हो जाती है।
योगनिद्रा अर्थात् आध्यात्मिक नींद-
योगनिद्रा वह नींद है, जिसमें जागते हुए सोना है। सोने व जागने के बीच की स्थिति है योगनिद्रा। इसे हम स्वप्न और जागरण के बीच ही स्थिति मान सकते हैं। यह झपकी जैसा है या कहें कि अर्धचेतन जैसा है। देवता इसी निद्रा में सोते हैं।
ईश्वर का अनासक्त भाव से संसार की रचना, पालन और संहार का कार्य योगनिद्रा कहा जाता है। मनुष्य के सन्दर्भ में अनासक्त हो संसार में व्यवहार करना योगनिद्रा है।
योगनिद्रा लें और दिनभर तरोताजा रहें। प्रारंभ में हमें यह योगनिद्रा किसी योग विशेषज्ञ से सीखनी चाहिए, ताकि हमें अधिक लाभ प्राप्त हो सके।योगनिद्रा द्वारा शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहते हैं। यह नींद की कमी को भी पूरा कर देती है। इससे थकान, तनाव व अवसाद भी दूर हो जाता है। योग की भाषा में इसे प्रत्याहार कहा जाता है। जब मन इन्द्रियों से विमुख हो जाता है।
प्रत्याहार की सफलता एकाग्रता लाती है। योगनिद्रा में सोना नहीं है। योगनिद्रा द्वारा मनुष्य से अच्छे काम भी कराए जा सकते हैं। बुरी आदतें भी इससे छूट जाती हैं। योगनिद्रा का प्रयोग रक्तचाप, मधुमेह, हृदयरोग, सिरदर्द, तनाव, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन-दर्द, कमर-दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, अनिद्रा, अवसाद और अन्य मनोवैज्ञानिक बीमारियों, स्त्री रोग में प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभदायक है।
योगनिद्रा का संकल्प प्रयोग पशुओं पर भी किया जा सकता है। खिलाड़ी भी मैदान में खेलों में विजय प्राप्त करने के लिए योगनिद्रा लेते हैं। योगनिद्रा 10 से 45 मिनट तक की जा सकती है।
योगनिद्रा की विधि-
योगनिद्रा प्रारंभ करने के लिए खुली जगह का चयन किया करना चाहिए। यदि किसी बंद कमरे में करना है तो उसके दरवाजे और खिड़की खोल देने चाहिए। ढीले कपड़े पहनकर शवासन करें। जमीन पर दरी बिछाकर उस पर एक कंबल जरूर बिछाना चाहिए।हमारे दोनों पैर लगभग एक फुट की दूरी पर हों, हथेली कमर से छह इंच दूरी पर हो तथा आँखे बंद रहनी चाहिए।
हमें न तो शरीर को हिलाना है और नहीं नींद के आगोश में जाना है।यह एक मनोवैज्ञानिक नींद है।हमें किसी भी तरह के विचारों से जूझना नहीं है। हमें अपने शरीर व मन-मस्तिष्क को शिथिल करना है। हमें सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल करना है।हमें श्वास-निश्वास को नाभि तक सहजता से लेना है।
Self-imagination से Affirmation और Visualization की भूमि तैयार-
अब हम कल्पना करें कि हम समुद्र के किनारे लेटकर योगनिद्रा कर रहे हैं।हमारे हाथ, पांव, पेट, गर्दन, आंखें सब शिथिल हो गए हैं। हम स्वयं से कहें कि मैं योगनिद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूं।
योगनिद्रा में अच्छे कार्यों के लिए संकल्प लिया जाता है। बुरी आदतें छुड़ाने के लिए भी संकल्प ले सकते हैं। योगनिद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है। अब लेटे-लेटे पांच बार श्वास-निश्वास की प्रक्रिया नाभि तक इसमें पेट व छाती दोनों ही जगह प्राण धारण की अनुभूति होगी। पेट ऊपर-नीचे होगा। अब परमात्मा का ध्यान करें और मन में संकल्प 3 बार बोलें।
अब हम अपने मन को शरीर के विभिन्न अंगों (76 अंगों) पर ले जाएं और उन्हें शिथिल व तनाव रहित होने का निर्देश दें। हम अपने मन को दाहिने पैर के अंगूठे पर ले जाएं। पैर की सभी उंगलियां कम से कम पैर का तलवा, एड़ी, पिण्डली, घुटना, जांध, नितंब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है। इसी तरह हम अपना बायां पैर भी शिथिल करें। सहजता से हम श्वास-निश्वास प्रक्रिया दोहराएं।हम अहसास करें कि समुद्र की शुद्ध वायु हमारे शरीर में आ रही है व गंदी वायु बाहर जा रही है।
अभिनव संकल्पना के नूतन आयाम-
हम कल्पना करें कि धरती माता ने हमारे शरीर को अपनी गोद में उठाया हुआ है। अब हम अपने मन को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे, सभी उंगलियों पर ले जाएं। कलाई, कोहनी, भुजा व कंधे पर ले जाएं। इसी प्रकार हम अपने मन को बाएं हाथ पर ले जाएं। दाहिना पेट, पेट के अंदर की आंतें, जिगर, अग्न्याशय दाएं व बाएं फेफड़े, हृदय व समस्त अंग हमारे शिथिल हो गए हैं।
हम हृदय में देखें। हमारे हृदय की धड़कन सामान्य हो गई है। हमारे ठुड्डी, गर्दन, होठ, गाल, नाक, आंख, कान, कपाल सभी शिथिल हो गए हैं। अंदर ही अंदर हम देखें कि हम तनाव रहित हो रहे हैं। सिर से पैर तक हम शिथिल हो गए हैं।ऑक्सीजन हमारे अंदर आ रही है और कार्बन डाई-ऑक्साइड बाहर जा रही है। हमारे शरीर की बीमारी बाहर जा रही है।हम अपने विचारों को तटस्थ होकर देखें।
अब हम अपनी कल्पना में गुलाब के फूल को देखें। चंपा के फूल को देखें। पूर्णिमा के चंद्रमा को देखें।आकाश में तारों को देखें। उगते हुए सूरज को देखें। बहते हुए झरने को देखें। तालाब में कमल को देखें। समुद्र की शुद्ध वायु आपके शरीर में जा रही है और बीमारी व तनाव बाहर जा रहा है। इससे हम स्वस्थ हो रहे हैं, तरोताजा हो रहे हैं।
अब हम सामने देखें। हमारे सामने समुद्र में एक जहाज खड़ा है।उस जहाज के अंदर जलती हुई मोमबत्ती को हम देखें। जहाज में दूसरी तरफ एक लालटेन जल रही है। हम उस जलती हुई लौ को देखें। फिर सामने देखें की खूब जोरों की बरसात हो रही है। बिजली चमक रही है, चमकती हुई बिजली को देखें, बादल गरज रहे हैं। गरजते हुए बादल की आवाज हम सुनें। नाक के आगे देखें। ऑक्सीजन हमारे शरीर में जा रही है। कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर जा रही है।
उपसंहार-
अंत में हम अपने मन को आज्ञाचक्र (दोनों भौहों के बीच) में लाएं व योगनिद्रा समाप्त करने से पहले हम अपने आराध्य का ध्यान करें व अपने संकल्प को तीन बार अंदर ही अंदर दोहराएं। लेटे ही लेटे बंद आंखों में तीन बार ओ3म् का उच्चारण करें। फिर दोनों हथेलियों को गरम करके आंखों पर लगाएं और पांच बार हम सहजता से श्वास-निश्वास लें। अब अंदर ही अंदर हम देखें कि हमारा शरीर, मन व मस्तिष्क तनाव रहित हो गया है और हम स्वस्थ व तरोताजा हो गए हैं।
-डॉ. कमलाकान्त बहुगुणा