विज्ञान की कसौटी पर योग
आचार्य बालकृष्ण
योगर्षि स्वामी रामदेवजी महाराज के क्रियात्मक पक्ष की अवधारणा
मौत के पर्याय बन चुके रोगों के निदान और समाधान में योग की भूमिका
“विज्ञान की कसौटी पर योग
“ पुस्तक के लेखक पतंजलिग्रुप के CEO आचार्य बालकृष्ण ने पूरी सहभागिता और प्रतिबध्दता के साथ योग की सहजता को वैज्ञानिक
आयामों से जोड़ कर विश्व समुदाय के लिए प्राचीनतम धरोहर को आधुनिकतम जीवनशैली में अनिवार्यता
के साथ स्वीकार्यता के लिए कतिपय ऐसे उदाहरणों की प्रस्तुति प्रमाणिकता के साथ की है
जो उनकी अनौखी रचनाधर्मिता की पहचान है ।
आचार्य बालकृष्ण जी के
इस लेखन में योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज के क्रियात्मक पक्ष की अवधारणा और उनकी
शोध प्रवृत्ति की स्पष्ट प्रतिछाया नजर आती है। बड़े ही आत्मगौरव के साथ लेखक स्वामीजी के प्रति गुरु, मित्र, भाई आदि हार्दिक भावों
से सश्रध्द और सकारुणिक हैं।
स्वामी जी का आशीर्वचनस्वरूप आलेख गागर में सागर की भांति योगक्षेत्र में नवनीत सदृश वांछनीय है। मौत के पर्याय बन चुके रोगों के निदान और समाधान में योग और प्राणायाम के चिकित्सकीय परीक्षणों के परिणाम से योग की सत्यता का प्रकटीकरण बुद्धिजीवी चिकित्सक वैज्ञानिकों के लिए जरूर क्रांतिकारी दिशा दर्शन में सहयोगी होगा।
योग भारत की प्राचीन धरोहर
है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए ऋषियों का
वरदान है और समाधान भी । स्वामीजी की वेदना
का कारण वे करोड़ों भारतीय भी हैं जो बीमार होने के बाद अत्यावश्यक दवा खरीदने में पूरी तरह असमर्थ हैं।
बहुत ही साफगोई से स्वामी
जी ने यह तथ्य उद्घाटित किया है कि यदि हम भारत देश की पूरी GDP भी स्वास्थ्य सेवाओं में लगा दें तो भी
हम अमेरिका जैसी स्वास्थ्य सेवाएं हासिल नहीं कर पाएंगे। परन्तु हम योग एवं प्राणायाम
को अभिन्नता से अपनी जीवनशैली में अनिवार्यता से जोड़ लें तो बिना एक रुपया व्यय किए
हम भारतवासी पूर्ण आरोग्यता पा सकते हैं। विज्ञान की कसौटी पर योग पुस्तक का उद्देश्य
भी बिना व्यय के आम आदमी की आरोग्यता ही है।
यह ग्रंथ बड़े आकार वाला
, रंगीन आवरण पृष्ठ ,310 पृष्ठ और 10 अध्यायों से सुसज्जित है। इसका कलेवर बहुत ही आकर्षक है। यह ग्रंथ
योग के संदर्भ में नितांत अभिनव शोध है। जिसका प्रकाशन 2007 में ही दो बार हो चुका
था। यही इसकी प्रमाणिकता का सर्वोत्तम उदाहरण है।
आम आदमी के लिए आवश्यक
स्वामी रामदेव जी द्वारा अनुमोदित प्राणायाम
की विधियां अवश्य पठनीय भी हैं और अमल में लानी भी आवश्यक हैं। प्राणायाम में बंधत्रय
अत्यंत सहायक तथा परिणाम में बहुत चमत्कारपूर्ण भी हैं। 1-जालन्धर 2-उड्डीयान 3-मूल ये तीन बन्ध हैं। इनका प्रशिक्षण योग्य गुरु के निर्देशन में होना चाहिए।
स्वामी जी ने प्राणायाम
की सात प्रक्रियाओं को बहुत ही वैज्ञानिकता के साथ प्रस्तुतीकरण किया है। इसमें क्रमबद्धता
और समयबद्धता का सुंदर सामंजस्य है।1-भस्त्रिका 2-कपालभाति 3- बाह्य 4-अनुलोमविलोम 5- भ्रामरी 6- उद्गीथ 7- प्रणव हैं।
विश्वास मानवीय संहिता
का अनमोल रत्न है। यह विश्वास बना है वि और
श्वास दो शब्दों के जुड़ने से। श्वास का तात्पर्य श्वसन क्रिया से है। यह श्वसन क्रिया
हमारे शरीर में दो स्तर पर होती है - एक रक्त कोशिका के स्तर
पर तो दूसरी उत्तक कोशिका स्तर पर । प्राणायाम से पूर्व श्वास -प्रश्वास की लयता पर नियंत्रण आवश्यक है। हम श्वास छोड़ें तो नाभि तक का भाग अंदर
की तरफ सिकुड़ना चाहिए और श्वास लेते समय भी नाभि तक का फूलना चाहिए। वस्तुतः नाभि तक
श्वास- प्रश्वास से लेने ही श्वास-प्रश्वास स्वतः गहरे और लंबे सहजता से हो सकेंगे। तभी विश्वास की शक्ति बढ़ेगी और
यही निरंतर प्रवाह आत्मविश्वास का महत् कारण भी बनता है।
-डॉ.कमलाकान्त बहुगुणा
युक्तिसंगत
जवाब देंहटाएं