शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

एक सुनियोजित प्रोपगैंडा के तहत भारत की मजबूत लोकतांत्रिक सरकार को नीचा दिखाने के लिए लिखी गयी है स्क्रिप्ट

एक सुनियोजित प्रोपगैंडा भारत की मजबूत लोकतांत्रिक सरकार को नीचा दिखाने के लिए


26 जनवरी के दिन जिन्होंने भारत की अस्मिता को पददलित किया है कुछ लोग पूर्णनियोजित तरीके से उनका जातीय स्वाभिमान के नाम पर अभिनंदन कर रहे हैंजनता भी सब समझ रही है जिन्होंने पूरी दिल्ली को बंधक बना कर रख दी है उनके प्रति संवेदनशील होना जरूर बहुत बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा हैकोरोना काल वैक्सीन के निर्माण से वैश्विक स्तर पर भारत की धमक से विचलित लोग और राष्ट्र भी इस प्रोपगैंडा में शामिल होकर भारत की सद्यः निर्मित आत्मनिर्भरता वाली छवि को नुकसान पंहुचाने के फेहरिस्त में जरूर शामिल हो गए हैं। 

बहुत अफ़सोस है कि आजकल किसान आन्दोलन को लेकर कई नामी और बदनामी शख्सियतों के ट्वीट पर क्रिया और प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। किसान आन्दोलन तो एक बहाना है। इसके पीछे उन देशी-विदेशी ताकतों का स्पष्ट हाथ है, जो मोदीजी के नेतृत्व में भारत की प्रगति और आत्मनिर्भरता के कारण बहुत घबराये हुऐ हैं।


पूरा विश्व एक बाजार है । विकसित देश अविकसित देशों को हथियार और टेक्नोलॉजी के सामान बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करता है और सदा उन्हें अपने आश्रित ही देखना चाहता है। मोदीजी के आत्मनिर्भर भारत का सपने ने विपक्षियों और विदेशी ताकतों की नींद हराम कर दी है। वामियों की आज भी भारत-विरोधी और हिन्दू-द्वेषी राजनीति चरम पर हैक्योंकि घटनाओं, स्थितियों, व्यक्तियों, समुदायों की माप-तौल के पैमाने, बाट, इंच-टेप सबमें भारतीयता के विरोध ज्यादा मुखरित हैं। नेहरूवादी-कम्युनिस्ट गठजोड़ के कारण बड़े पैमाने हमारे बुद्धिजीवियों की मानसिकता में भारत विरोध  और हिंदुत्व विद्वेष के भाव अनायास जमा दिए गए हैंतभी तो अथाह जन-समर्थन के बावजूद मोदी सरकार को अपदस्थ और लांछित करने में हर हथकंडा आसानी से  चला पा रहे हैं।इससे जो हानि हो रही है, उससे भारत के सभी युवाओं को पूरी तरह अवगत होना चाहिए। 


सोशल मीडिया पर दिल्ली पुलिस का उपहास उड़ाया जा रहा है कि वह ग्रेटा थनबर्ग पर एफआईआर दर्ज करके क्या कर लेगी? जबकि दिल्ली पुलिस के एफआईआर में ग्रेटा का नाम ही नहीं है। जिस टूलकिट डौक्यूमेंट को उसने अपलोड किया उसके अनाम निर्माता पर केस है।

दिल्ली पुलिस को किसान आंदोलन से सम्बंधित सोशल मीडिया की मौनिटरिंग करते समय पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के टूलकिट पर नजर गई। यहां 26 जनवरी और उसके पहले की योजना का विवरण लिखा हुआ था। 26जनवरी का पूरा कार्यक्रम  लगभग वैसे ही संपन्न हुआ भी।विदित हो कि यह खालिस्तान समर्थक संगठन है। ज्ञात रहे कि ग्रेटा थनवर्ग के ट्वीट में यही टूलकिट लगा था । ग्रेटा थनवर्ग भारत विरोधियों का कमजोर मोहरा निकली। उसे अपना ट्वीट ही डिलीट करना पड़ा। हां ! उसने दूसरा ट्वीट किया। सरकार को योग्य एजेंसियों से इसकी गहराई से छानबीन जरूर करानी चाहिए।

अमेरिका के बाइडेन प्रशासन से वामपंथी समूह उम्मीद लगाए हुए था , लेकिन उस  बाइडन प्रशासन ने तो कृषि  कानूनों को ही सही ठहरा दिया। नए कृषि कानूनों के विरोध में भारत में जारी किसान आंदोलन पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि बाइडन सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए भारत सरकार के कदम का समर्थन करती है, जो किसानों के लिए निजी निवेश और अधिक बाजार पहुंच को आकर्षित करती है। सामान्य तौर पर अमेरिका भारतीय बाजारों की कार्यकुशलता को सुधारने और बड़े पैमाने पर निजी सेक्टर के निवेश को आकर्षित करने के लिए उठाए गए कदमों का स्वागत करता है।  अमेरिकी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि  अमेरिका ऐसे कदमों का स्वागत करता है, जो भारतीय बाजारों की दक्षता में सुधार करेंगे और निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करेंगे। साथ ही यह भी कहा कि हमारा मानना है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किसी भी संपन्न लोकतंत्र की पहचान है और भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी यही कहा है। विरोध प्रदर्शन से तो किसी को रोका नहीं गया है। गणतंत्र दिवस के अक्षम्य अपराध के बावजूद आंदोलन जारी है।

आज भारतीय जनमानस को यह जरूर पहचानने के लिए कृतसंकल्पित होना होगा कि आखिरकार कब तक ये आदतन आंदोलनकारी आम आदमी की आंखों में झूठ का पर्दा डालेंगे?

                -डॉ.कमलाकान्त बहुगुणा

 

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

मौत के पर्याय बन चुके रोगों के निदान और समाधान में योग की भूमिका


विज्ञान की कसौटी पर योग

आचार्य बालकृष्ण

योगर्षि स्वामी रामदेवजी महाराज के क्रियात्मक पक्ष की अवधारणा

मौत के पर्याय बन चुके रोगों के निदान और समाधान में योग की भूमिका



“विज्ञान की कसौटी पर योग “ पुस्तक  के लेखक पतंजलिग्रुप के CEO आचार्य बालकृष्ण ने पूरी सहभागिता और प्रतिबध्दता के साथ योग की सहजता को वैज्ञानिक आयामों से जोड़ कर विश्व समुदाय के लिए प्राचीनतम धरोहर को आधुनिकतम जीवनशैली में अनिवार्यता के साथ स्वीकार्यता के लिए कतिपय ऐसे उदाहरणों की प्रस्तुति प्रमाणिकता के साथ की है जो उनकी अनौखी रचनाधर्मिता की पहचान है ।

आचार्य बालकृष्ण जी के इस लेखन में योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज के क्रियात्मक पक्ष की अवधारणा और उनकी शोध प्रवृत्ति की स्पष्ट प्रतिछाया नजर आती है। बड़े ही आत्मगौरव के साथ  लेखक स्वामीजी के प्रति गुरु, मित्र, भाई आदि हार्दिक भावों से सश्रध्द और सकारुणिक  हैं।

स्वामी जी का आशीर्वचनस्वरूप  आलेख गागर में सागर की भांति योगक्षेत्र में  नवनीत सदृश वांछनीय है। मौत के पर्याय बन चुके रोगों के निदान और समाधान में योग और प्राणायाम के चिकित्सकीय परीक्षणों के परिणाम से योग की सत्यता का प्रकटीकरण बुद्धिजीवी चिकित्सक वैज्ञानिकों के लिए जरूर क्रांतिकारी दिशा दर्शन में सहयोगी होगा।

योग भारत की प्राचीन धरोहर है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए  ऋषियों का वरदान है  और समाधान भी । स्वामीजी की वेदना का कारण वे करोड़ों भारतीय भी हैं जो बीमार होने के बाद अत्यावश्यक दवा  खरीदने में पूरी तरह असमर्थ हैं।

बहुत ही साफगोई से स्वामी जी ने यह तथ्य उद्घाटित किया है कि यदि हम भारत  देश की पूरी GDP भी स्वास्थ्य सेवाओं में लगा दें  तो भी हम अमेरिका जैसी स्वास्थ्य सेवाएं हासिल नहीं कर पाएंगे। परन्तु हम योग एवं प्राणायाम को अभिन्नता से अपनी जीवनशैली में अनिवार्यता से जोड़ लें तो बिना एक रुपया व्यय किए हम भारतवासी पूर्ण आरोग्यता पा सकते हैं। विज्ञान की कसौटी पर योग पुस्तक का उद्देश्य भी बिना व्यय के आम आदमी की आरोग्यता ही है।

यह ग्रंथ बड़े आकार वाला , रंगीन आवरण पृष्ठ ,310 पृष्ठ और 10 अध्यायों से सुसज्जित है। इसका कलेवर बहुत ही आकर्षक है। यह ग्रंथ योग के संदर्भ में नितांत अभिनव शोध है। जिसका प्रकाशन 2007 में ही दो बार हो चुका था। यही इसकी प्रमाणिकता का सर्वोत्तम उदाहरण है।

आम आदमी के लिए आवश्यक  स्वामी रामदेव जी द्वारा अनुमोदित प्राणायाम की विधियां अवश्य पठनीय भी हैं और अमल में लानी भी आवश्यक हैं। प्राणायाम में बंधत्रय अत्यंत सहायक तथा  परिणाम में बहुत चमत्कारपूर्ण भी हैं। 1-जालन्धर 2-उड्डीयान 3-मूल ये तीन बन्ध हैं। इनका प्रशिक्षण योग्य गुरु के निर्देशन में होना चाहिए।

स्वामी जी ने प्राणायाम की सात प्रक्रियाओं को बहुत ही वैज्ञानिकता के साथ प्रस्तुतीकरण किया है। इसमें क्रमबद्धता और समयबद्धता का सुंदर सामंजस्य है।1-भस्त्रिका 2-कपालभाति 3- बाह्य 4-अनुलोमविलोम 5- भ्रामरी 6- उद्गीथ 7- प्रणव हैं।

विश्वास मानवीय संहिता का अनमोल  रत्न है। यह विश्वास बना है वि और श्वास दो शब्दों के जुड़ने से। श्वास का तात्पर्य श्वसन क्रिया से है। यह श्वसन क्रिया हमारे शरीर में दो स्तर पर होती है - एक रक्त कोशिका के स्तर पर तो दूसरी उत्तक कोशिका स्तर पर । प्राणायाम से पूर्व श्वास -प्रश्वास की लयता पर नियंत्रण आवश्यक है। हम श्वास छोड़ें तो नाभि तक का भाग अंदर की तरफ सिकुड़ना चाहिए और श्वास लेते समय भी नाभि तक का फूलना चाहिए। वस्तुतः नाभि तक श्वास- प्रश्वास से लेने ही श्वास-प्रश्वास स्वतः गहरे और लंबे सहजता से हो सकेंगे। तभी विश्वास की शक्ति बढ़ेगी और यही निरंतर प्रवाह आत्मविश्वास का महत् कारण भी बनता है।

                                                   -डॉ.कमलाकान्त बहुगुणा


 

 

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

72वां गणतंत्र दिवस और किसान आंदोलन

72वां गणतंत्र दिवस और किसान आंदोलन

 संविधान और विधान
 ग्रामर ऑफ एनार्की




गणतंत्र दिवस वह राष्ट्रीय पर्व है जो हमें  यह स्मरण कराता है कि यह आजादी हमने बहुत कीमत देकर  पाई है। यह आजादी तभी सतत रह पाएगी जब हम इसके संविधान की सुरक्षा भी करेंगे और अपने जीवन को उसके अनुरूप ढालेंगे भी। यह संविधान साढ़े पांच सौ से अधिक राज्यों से बने देश का है।

संविधान का तात्पर्य है देश के प्रत्येक नागरिक की खुशहाली के लिए गरिमापूर्ण अवसरों की तलाश। उदाहरण के अनुसार जैसे कोई  भी नागरिक भूखा न सोए - यह है संविधान। और परिस्थिति तथा आर्थिक स्थिति के अनुसार उपाय करना है विधान । संविधान का अर्थ है देश के प्रत्येक नागरिक के लिए समाधान का पर्याय बनना ।

26 नवंबर 1949 को संविधानसभा में दिया गया डॉ.भीमराव अम्बेडकर का भाषण जरूर आज की परिस्थितियों को प्रतिध्वनित करता है। जिसे ग्रामर ऑफ एनार्की के नाम से जाना जाता है। तब डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट चेतावनी के साथ चेताया भी था कि जहां संवैधानिक विकल्प उपलब्ध हों वहां असंवैधानिक तरीकों को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यह तरीका केवल ग्रामर ऑफ एनार्की के अलावा कुछ और नहीं है।हम इसका जितनी जल्दी परित्याग करेंगे उतना बेहतर होगा।

ऐतिहासिक घटनाओं का हवाला देते हुए उन्होंने यह भी बताया था कि बड़ी कठिनाई से हासिल हुई आजादी को हल्के में लेने वाले तत्वों को आगाह करते हुए कहा था भारत देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या फिर वे अपने पंथ को देश से ज्यादा महत्व देंगे ? मैं नहीं जानता  अगर उन्होंने पंथ को देश से अधिक महत्व दिया  तो हमारी आजादी न सिर्फ खतरे में पड़ जाएगी बल्कि शायद हम उसे दूसरी बार भी खो सकते हैं।

किसान आंदोलन के नाम पर पंडितों को देख लेने की बात ,बक्कल उतार देंगे , हमने इंदिरा को नहीं छोड़ा तो मोदी क्या चीज है,  मोदी मर जा तू , लाठी और डंडे साथ ले आना , समझ गए न, आदि बयान और नारों को हल्के में लेना और संविधान की मर्यादा की बात करना जरूर किसी बड़े षड्यंत्र की तरफ भी संकेत करता है।

हद तो तब हो गई जब ट्रेक्टर रैली में ट्रैक्टर, लाठी और तलवार से रास्ते में आने वाली प्रत्येक चीज को नुकसान पंहुचाते हुए आगे बढ़ रहे थे।सार्वजनिक संपत्ति और पुलिस कर्मियों पर उनके गुस्से को भारत की आजादी और भारतीय गणतंत्र विरोधी मानसिकता वालों ने ही भड़काया है।

मुझे यह स्वीकार करते हुए कोई अफ़सोस नहीं है कि किसान आंदोलन के पीछे बिचौलियों और आढ़तियों का घृणित चेहरा है। सुनने में तो यहां तक आरहा है कि पंजाब के किसान नेता हैं जो पूरे पंजाब की फसल को  फिक्स दर पर खरीदते हैं और उसी अनाज को सरकार द्वारा निर्धारित उच्च दाम में FCI को बेच देते हैं । यही अनाज FCI के मिलीभगत से गोदाम में सड़ा दिखा कर उसकी नीलामी करते हैं, और फिर उसे कम दाम पर पुन: खरीदकर  अपनी शराब फैक्ट्रीयो में भेज कर शराब तथा बियर बनाते हैं । पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा अत्यधिक रसायनों का प्रयोग कर उगाई गई जहरीली फसल स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। सरकार को यह भी पता लगाना चाहिए कि  इन लोगों ने कोई मेडिकल कम्पनी तो नहीं खोली हुई है, जो कैंसर जैसी बीमारियों के लिये दवाइयां बनाती हों? अत्यधिक कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से उगाई फसलों के कारण ही देश में  कैंसर जैसी दर्दनाक बीमारियां जोरों से अपने पांव पसार रही हैं ।

गिनती के पंद्रह किसान नेताओं को छोड़ दें तो बाकी सारे  मंडी के दलाल मिलेंगे। किसानों के सबसे बड़े दुश्मन ये किसान नेता ही हैं ।

भारत सरकार के तीन कृषि कानूनों  से इन नेताओं के सारे घोटाले बन्द हो जायेंगे कहीं  इसीलिए तो यह विरोध नहीं चल रहा हो? इस संदेह का कारण भी साफ है सरकार की सुनेंगे नहीं सुप्रीम कोर्ट की मानेंगे नहीं है।बस एक ही रट कृषि कानून को वापिस लो, जबकि सरकार डेढ़ साल तक कानूनों को स्थगित करने की मंशा व्यक्त कर चुकी है।

गणतंत्र का पर्व देश का राष्ट्रीय पर्व है। इस पावन पर्व के दिन विरोध प्रदर्शन की जिद स्वाभाविक संकेत देरही है कि दाल पूरी ही काली है। कहीं यह  आजादी और भारतीय गणतंत्र पर  सुनियोजित हमला तो नहीं है।

अब जिम्मेदारी लेने की बजाय आंसुओं से भावनात्मक ड्रामा द्वारा जातीय आकर्षण की भी रोटियां सेकनी शुरू हो चुकी हैं। हर पाशे को बहुत ही चालाकी से फेंकने में माहिर लोगों के लिए यह आंदोलन पवित्र संगम बन गया है।योगेंद्र यादव सदृश जो राजनीति में  जनता द्वारा पूरी तरह से नकारे गए हैं वे आदतन आंदोलन में शामिल होकर अरविंद केजरीवाल की तरह अपने उद्भव की आकांक्षा पाले  लोगों के लिए पिछले साल सीएए के खिलाफ  महातीर्थ तब शाहीनबाग था तो आज सिंधु बॉर्डर जिसे राहुलगांधी शम्भू बॉर्डर कह गए।

पंजाब में पंचायतों  द्वारा असंवैधानिक फ़रमान दिया जाना कि घर से एक सदस्य का अनिवार्यरूप से  आंदोलन में शरीक होने के लिए। अन्यथा समाज से बहिष्कार किया जाएगा। जरूर कुछ अनहोनी की भी मंशा जाहिर कर रहा है।

अंग्रेजो की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ाते हुए खालिस्तान की मांग को इसी कड़ी में कुछ गणतंत्र विरोधी देख रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़कों में हिंसा करने वाले दुःखी तो इस बात से भी थे कि 370 हटाने और राममंदिर का कार्य का शुभारंभ बिना खून खराबे  के हो कैसे गया? कोरोना नियंत्रण और वैक्सीन का निर्माण मोदी सरकार कैसे कर सकती है। ये तो ताली और घंटी बजाने वालों की सरकार है। उनका इरादा कृषि कानूनों का विरोध नहीं था,बल्कि देश में दंगे और अस्थिरता था। तभी उन्हें आश्चर्य है कि तिरंगे के अपमान पर पुलिस ने गोली क्यों नहीं चलाई ? पुलिस का अप्रतिम धैर्य देखकर उन्हें सैल्यूट करने का मन प्रत्येक देशप्रेमियों को करता रहेगा। पुलिस ने  खुद पिट कर पूरे पंजाब को जलने से बचा लिया है।

                                         - डॉ. कमलाकान्त बहुगुणा

 

सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु

स्मृति और कल्पना

  प्रायः अतीत की स्मृतियों में वृद्ध और भविष्य की कल्पनाओं में  युवा और  बालक खोए रहते हैं।वर्तमान ही वह महाकाल है जिसे स...