एक सुनियोजित प्रोपगैंडा भारत की मजबूत लोकतांत्रिक सरकार को नीचा दिखाने के लिए
26 जनवरी के दिन जिन्होंने भारत की अस्मिता को पददलित किया है कुछ लोग पूर्णनियोजित तरीके से उनका जातीय स्वाभिमान के नाम पर अभिनंदन कर रहे हैं। जनता भी सब समझ रही है जिन्होंने पूरी दिल्ली को बंधक बना कर रख दी है उनके प्रति संवेदनशील होना जरूर बहुत बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा है। कोरोना काल वैक्सीन के निर्माण से वैश्विक स्तर पर भारत की धमक से विचलित लोग और राष्ट्र भी इस प्रोपगैंडा में शामिल होकर भारत की सद्यः निर्मित आत्मनिर्भरता वाली छवि को नुकसान पंहुचाने के फेहरिस्त में जरूर शामिल हो गए हैं।
बहुत अफ़सोस है कि आजकल किसान आन्दोलन को लेकर कई नामी
और बदनामी शख्सियतों के ट्वीट पर क्रिया और प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। किसान
आन्दोलन तो एक बहाना है। इसके पीछे उन देशी-विदेशी ताकतों का स्पष्ट हाथ है, जो मोदीजी के नेतृत्व में भारत की
प्रगति और आत्मनिर्भरता के कारण बहुत घबराये हुऐ हैं।
पूरा विश्व एक बाजार है । विकसित देश अविकसित देशों को हथियार और टेक्नोलॉजी के सामान बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करता है और सदा उन्हें अपने आश्रित ही देखना चाहता है। मोदीजी के आत्मनिर्भर भारत का सपने ने विपक्षियों और विदेशी ताकतों की नींद हराम कर दी है। वामियों की आज भी भारत-विरोधी और हिन्दू-द्वेषी राजनीति चरम पर है। क्योंकि घटनाओं, स्थितियों, व्यक्तियों, समुदायों की माप-तौल के पैमाने, बाट, इंच-टेप सबमें भारतीयता के विरोध ज्यादा मुखरित हैं। नेहरूवादी-कम्युनिस्ट गठजोड़ के कारण बड़े पैमाने हमारे बुद्धिजीवियों की मानसिकता में भारत विरोध और हिंदुत्व विद्वेष के भाव अनायास जमा दिए गए हैं। तभी तो अथाह जन-समर्थन के बावजूद मोदी सरकार को अपदस्थ और लांछित करने में हर हथकंडा आसानी से चला पा रहे हैं।इससे जो हानि हो रही है, उससे भारत के सभी युवाओं को पूरी तरह अवगत होना चाहिए।
सोशल मीडिया पर दिल्ली पुलिस का उपहास उड़ाया जा रहा है कि वह ग्रेटा थनबर्ग पर एफआईआर दर्ज करके क्या कर लेगी? जबकि दिल्ली पुलिस के एफआईआर में ग्रेटा का नाम ही नहीं है। जिस टूलकिट डौक्यूमेंट को उसने अपलोड किया उसके अनाम निर्माता पर केस है।
दिल्ली पुलिस को किसान आंदोलन से सम्बंधित सोशल मीडिया
की मौनिटरिंग करते समय पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के टूलकिट पर नजर गई। यहां 26 जनवरी
और उसके पहले की योजना का विवरण लिखा हुआ था। 26जनवरी का पूरा कार्यक्रम लगभग वैसे ही संपन्न हुआ भी।विदित हो कि यह
खालिस्तान समर्थक संगठन है। ज्ञात रहे कि ग्रेटा थनवर्ग के ट्वीट में यही टूलकिट
लगा था । ग्रेटा थनवर्ग भारत विरोधियों का कमजोर मोहरा निकली। उसे अपना ट्वीट ही
डिलीट करना पड़ा। हां ! उसने दूसरा ट्वीट किया। सरकार को योग्य एजेंसियों से इसकी
गहराई से छानबीन जरूर करानी चाहिए।
अमेरिका के बाइडेन प्रशासन से वामपंथी समूह उम्मीद लगाए हुए था , लेकिन उस बाइडन प्रशासन ने तो कृषि कानूनों को ही सही ठहरा
दिया। नए कृषि कानूनों के विरोध में भारत में जारी किसान आंदोलन पर प्रतिक्रिया
देते हुए अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि बाइडन सरकार कृषि क्षेत्र
में सुधार के लिए भारत सरकार के कदम का समर्थन करती है, जो किसानों के लिए निजी
निवेश और अधिक बाजार पहुंच को आकर्षित करती है। सामान्य तौर पर अमेरिका भारतीय
बाजारों की कार्यकुशलता को सुधारने और बड़े पैमाने पर निजी सेक्टर के निवेश को
आकर्षित करने के लिए उठाए गए कदमों का स्वागत करता है। अमेरिकी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि अमेरिका
ऐसे कदमों का स्वागत करता है, जो भारतीय बाजारों की दक्षता में सुधार करेंगे और
निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करेंगे। साथ ही यह भी कहा कि हमारा मानना है कि शांतिपूर्ण
विरोध प्रदर्शन किसी भी संपन्न लोकतंत्र की पहचान है और भारतीय सर्वोच्च न्यायालय
ने भी यही कहा है। विरोध प्रदर्शन से तो किसी को रोका नहीं गया है। गणतंत्र दिवस
के अक्षम्य अपराध के बावजूद आंदोलन जारी है।
आज भारतीय जनमानस को यह जरूर पहचानने के लिए कृतसंकल्पित होना होगा कि आखिरकार कब तक ये आदतन आंदोलनकारी आम आदमी की आंखों में झूठ का पर्दा डालेंगे?
-डॉ.कमलाकान्त बहुगुणा