सोमवार, 4 जनवरी 2016

समाधान की समझ भी सन्देश दे

याद कीजिये 4 जून, 2015 को मणिपुर में नगा(NSCN-K) आतंकियों ने भारतीय सेना की एक टुकड़ी पर हमला किया जिसमें हमारे 18 जवान बलिदान हो गये थे।

इस घटना के बाद जब फेसबुक ,watsapp पर हम सब मोदी सरकार को कोस रहे थे, उस समय मोदी दिल्ली में अजित डोवाल, मनोहर परिक्कर और सेना प्रमुख के साथ बैठकर योजना बना रहे थे कि नगा आतंकियों को कैसे म्यांमार में घुसकर ही ढेर कर दिया जाए। कुछ ही दिन बाद सेना ने म्यांमार में जाकर आतंकियों को मारा और उनके शिविर भी नष्ट कर दिये।

पठानकोट में हुए हमले से हम सब आहत हैं लेकिन जिसके पास देश की जिम्मेदारी है यकीनन वो हमसे ज्यादा आहत होगा और विश्वास करिये वो चुपचाप नहीं बैठा होगा।

अधीर हो जाना ठीक नहीं। वो कोई अपनी सात पुश्तों के रहने-खाने का इंतजाम करने के लिए दिल्ली में नहीं बैठा है। जिस काम के लिए हमने उसे चुना है, वो अपना दिन-रात उसी में समर्पित किये हुए है। जरा धैर्य रखिए, सही समय पर परिणाम भी दिखेगा।

रविवार, 3 जनवरी 2016

आतंकवाद का जख्म

विडंबना ही कहेंगे कि आतंकवाद का जख्म वो करते गए और हम शालीनता तथा अहिंसा के  गीत गाते रहे । कभी उनकी धमकी तो कभी उनका बार यूं ही हम सदा  सबकुछ सहते रहे। शहीदों की चिता की राख ठंढ़ी भी नही हुई कि देश के नेता उससे पहले आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलने लग गए ।
शहीदों की विधवा पत्नियों ,मासूम बच्चों और उनके परिजनों के तरफ से पुछना चाहूँगा कि कब तक हम अपने बेटा ; पति और बाप का बलिदान देते रहेंगे ? कब बनेगा कोई कानून कब बनेगा ठोस सुरक्षा का आधुनिकतम हथियार और उस पर अमल करने की आजादी ?
कानून कब देशद्रोहियों को उसी  पल खत्म करने का अधिकार देगा ? कब तक हल्ला मचेगा अफजल के फाँसी पर? क्यों रोता है कोई मेमन की मौत की सजा पर?
राजनीति और धर्म का नापाक मेल कहीं न कहीं आतंकवादियों पर प्रहार करने से रोकता है और शहीदों के रक्त बहने पर हमें  रोने के लिए अभिषप्त करता  है ।नेताओं की चमड़ी मोटी है। राजनीति के क्रुर बंदिशों के कारण ही भारतीयों की जान सस्ती हो चली है ।

वैदिक दर्शन का एकात्मवाद

वैदिक दर्शन का एकात्मवाद

एकात्मता- मन्त्र

यं वैदिका मन्त्रदृश: पुराणा इन्द्रं यमं मातरिश्वानमाहु: । वेदान्तिनोऽनिर्वचनीयमेकं यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिशन्ति ॥१॥ शैवा यमीशं शिव इत्यवोचन् यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति । बुद्धतथाऽर्हन्नति बौद्धजैनाः सत् श्री-अकालेति च सिक्खसन्तः ॥२॥ शास्तेति केचित् प्रकृतिः कुमारः स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या । यं प्रार्थयन्ते जगदीशितारं स एक एव प्रभुरद्वितीयः ॥३॥
भारत माता की जय

सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु

स्मृति और कल्पना

  प्रायः अतीत की स्मृतियों में वृद्ध और भविष्य की कल्पनाओं में  युवा और  बालक खोए रहते हैं।वर्तमान ही वह महाकाल है जिसे स...