किसान आंदोलन में भिंडरावाले के पोस्टर और खालिस्तान के नारे क्यों लग रहे हैं? साथ ही भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वालों की अचानक खेती में दिलचस्पी क्यों जगी?अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति ही इस रोग की जड़ है।यह फूट डालो की नीति मात्र अंग्रेजों की राजनीतक ही नहीं थी अपितु बौद्धिक प्रयास भी उनके समानांतर से जारी थे। सिखों को हिंदुओं से अलग करने के लिए ही अंग्रेजों ने जॉन अर्थर मैकालिफे को सिखों का इतिहास लिखने की जिम्मेदारी सौंपी। इतिहास लेखन में उद्दीपन फूट डालना ही था। बहुत ही सुनियोजित शैली में इस धारणा को गढ़ा गया कि सिख विचारधारा या फिर सिख जीवन दर्शन इस्लाम और ईसाइयत के अधिक निकट है न कि सनातन हिंदू धर्म के।
मुट्ठी भर अंग्रेजों ने यूं ही भारत को अपने कब्जे
में नहीं किया था, बल्कि उन्होंने पूरी तरह से रीसर्च कर बहुसंख्यक हिंदुओं की हर तरह की कमजोरी को भांप कर अपने षड्यंत्रों को अमलीजामा
पहनाया था। यदि कदाचित् 1857 के बाद बहुसंख्यक हिंदुओं द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध
सशस्त्र संघर्ष खड़ा होजाए तो उसके मुकाबले के लिए सिख और मुस्लिम का गठजोड़ खड़ा किया जा सके।
स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की लंबी उम्र
हेतु सिखों और हिंदुओं के बीच लंबी खाई खोदने का काम किया गया था। आज भारत को एक वैश्विक महाशक्ति
के रूप में उभरने से रोकने के लिए वामपंथी -टुकड़े -टुकड़े गैंग और इस्लामिक कट्टरपंथी
गैंग सिखों और हिंदुओं में खाई खोदने का काम कर रहे हैं।ताकि सिखों और हिंदुओं की समरसता को विषाक्त किया जा सके।
सिखों को यह याद जरूर रखना चाहिए कि सिख गुरुओं ने अपने
प्राणोत्सर्ग हिंदुओं के विरुद्ध नहीं किया था। सिख मुस्लिम एकता रूपी चालबाजी की असलियत को 1947 में बड़ा झटका का लगा था, जब मुस्लिम लीग
ने हिंदुओं के साथ सिखों का बड़ा नरसंहार किया था। इस मानवीय त्रासदी की कहानी का वर्णन खुद शिरोमणि
गुरुप्रबंधक कमेटी द्वारा प्रकाशित मुस्लिम लीग अटैक ऑन सिख्स एंड हिंदूज इन द पंजाब
में है।
अवश्य विचारणीय है कि खालिस्तानियों की आंखों में पट्टी क्यों बंधी है? पाकिस्तान में सिख लड़कियों को भी अगवा किया जाता है।उस पाकिस्तान के प्यादे बने हुए हैं जहां सिखों का जीना बेमुश्किल है।ये नागरीकता संशोधन कानून के भी खिलाफ हैं।पाकिस्तान के षड्यंत्र ने ही कनाडा,अमेरिका ब्रिटेन आदि यूरोपीय देशों से खालिस्तानी मूवमेंट द्वारा इंटरनेट पर 2020 अलग खालिस्तान की मांग केे लिए जनमत संग्रह का अभियान चलाया जा रहा था।
किसान अन्नदाता हैं। किसान की समस्या राष्ट्र के प्रत्येक
नागरिक की समस्या है। समाधान के लिए संवाद सबसे महत्त्वपूर्ण उपक्रम है।परंतु जिद
में तब्दील आग्रह लोकतांत्रिक गरिमा को ठेस पंहुचाता है। यह आग्रह सरकार की मानेंगे
नहीं और सुप्रीम कोर्ट की सुनेंगे नहीं अवश्य
किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी तत्त्वों की सक्रियता का सत्य आभास करा रहा है।
- डॉ. कमलाकान्त बहुगुणा
सभी का स्वागत है किसान आंदोलन के पक्ष में स्वस्थ चर्चा हेतु..
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक टिप्पणी
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