गुरुवार, 21 जनवरी 2021

संभावनाओं के अपार द्रष्टा स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण

संभावनाओं  के अपारद्रष्टा  स्वामी रामदेव  और आचार्य बालकृष्ण 

गुरुकुल परम्परा से अधीत स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण आधुनिक भारत में उन गिने चुने शख्सियतों में से हैं जिन्होंने भारत के आम आदमी की तरह से सामान्य परिवेश में  पलते बढ़ते और सीखते हुए हर व्यक्ति में अपार  संभावनाओं के सूत्र की व्याख्या हेतु अपने जीवन का गतिमान उदाहरण प्रस्तुत किया है।

जीवन में सबसे अहं और क्रांतिकारी क्षण है अपने अस्तित्व की प्रकृति से परिचय बोध इसी क्षण का नाम है आत्मजगारण Self awareness. हॉवर्ड यूनिवर्सिटी और गुरुकुल में अंतर करने की प्रवृत्ति में समीक्षा की आवश्यकता जरूर जान पड़ रही है। अंग्रेजों से पहले का भारत मार्केटिंग के उन रहस्यों से अनभिज्ञ था जिसमें श्रम की अपेक्षा सपनों को बेचना होता था। इच्छन्ति देवा: सुन्वन्तं  स्वप्नाय स्पृहयन्ति यन्ति प्रमादमतन्द्राः  वैदिक साहित्य  में यज्ञ का अर्थ कर्मशीलता है। सपनों की जगह यथार्थ धरातल की स्वीकार्यता ही वैदिक संस्कृति  के उद्देश्ययों में अन्यतम है।स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों ही विभूतियाँ संघर्षों को पराजित कर कई तरह  के विषपान के उपरांत ही कुन्दन बने हैं। उनके संघर्षों के साक्षी  सदा  कर्म   के प्रति  इनकी अखण्डता को प्रमुखता से श्रेय देते हैं।

दोनों ही विभूतियां उस उत्कर्ष तक अपने आयाम को प्रतिध्वनित कर चुके हैं जहां साधारण तो क्या विशेष भी अवशेषों में शुमार हो जाए। हो सकता है कंडीशनिंग के पक्षपाती इसे उनके प्रारब्ध को श्रेय दें परन्तु पेरेडाइम की प्रवृत्ति वाले जानते हैं कि विचारों का उदयन ही कर्म की आधारशिला है। कर्म की अखंडता आदत का निर्माण और आदत की परिपक्वता चरित्र की महापूँजी सृजित करती है। यही वह महान सम्पदा नियति की नींव है।

भारतभूमि  ज्ञान और भक्ति की उर्वरा भूमि है। एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति   में यह भाव विशेषतया निहित है कि हम दूसरों को सुधारने प्रवृत्ति से मुक्त नहीं होसकते हैं सच्ची मुक्ति तो स्वीकार्यता में है। स्वीकार्यता ही सुधार की परम कोशिश है। जहां स्वामी रामदेव नेतृत्व गुणों से पूर्णतया अभिव्यंजित हैं  वहीं आचार्य बालकृष्ण प्रबंधन कौशल के अनौखे शिल्पकार हैं।

सफलता का मन्त्र  है  स्थायित्व और विकास । स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण इस मंत्र को अक्षरश:  जी रहे हैं। वे निरंतर प्रवाहित हो रही जल की  धारा सदृश बिना थके मानवता की सुरक्षा और मार्गदर्शन हेतु सक्रिय भी हैं और अपडेट व अपग्रेड के नवीनीकरण हेतु प्रयत्नशील भी। जल की एक बूंद समस्त ब्रह्मांड की व्याख्या करने में सक्षम भी है और पर्याप्त भी । जल नरम भी है और लचीला भी।परंतु  पानी की एक बूंद के गिरने से कठोर शिलाएं भी टूट जाती हैं। पानी की आवाज जीवन की आवाज है । हमारे अस्तित्व की प्रतिध्वनि है। पानी का सतत प्रवाह पत्थर को भी अपने अनुकूल बना देता है।

दोनों ही विभूतियों का जीवन नदी की तरह है। नदी की जब भी बाधा से भेंट होती है नया रास्ता निर्मित कर लेती है।जल नरम भी है और विनम्र भी ।लेकिन सबसे अधिक शक्तिशाली और सबसे अधिक टिकाऊ है। मानवता महासमुद्र है।समुद्र की कुछ बूंदे गंदी हों तो सारा समुद्र गंदा नहीं हो जाता है। यह प्रवाहमानता ही संभावनाओं के लिए परम द्वार और अपरिमित स्रोत है। यही वैशिष्ट्य इन विभूतियों में पदे-पदे अभिव्यंजित होता है।

                                        -डॉ कमलाकान्त बहुगुणा

 

 

 

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सत्य है, गुरुदेव की लेखनी से लिखा हुआ एक एक शब्द सर्वमान्य है।प्रणाम

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  2. आभार आप सबका हृदय की गहराई से

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  3. सामान्य और साधारण व्यक्ति ही इतिहास रचा करते हैं ।आपने बहुत ही सहजता के साथ उनका व्यक्तित्व प्रस्तुत किया है

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