शनिवार, 23 जनवरी 2021

कोरोना काल में योग और आयुर्वेद

कोरोना काल में योग और आयुर्वेद

योग और आयुर्वेद के पर्याय हैं  बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण

·   सोशल डिस्टेंस में नमस्ते अभिवादन की अहमियत

·  योग और आयुर्वेद भारत की आत्मा में सदा से 

कोरोना काल भारत की प्राचीन धरोहर वैदिक संस्कृति पर गर्वित होने के साथ ही उसके पालन का अक्षरशः अनवरत महत्तम संकेत भी है सोशल डिस्टेंस में नमस्ते अभिवादन की अहमियत अमेरिका आदि सभी योरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने समझा भी और उसको अपनाया भी। एक बात जरूर सबको समझनी चाहिए कि रिसर्चर और ऋषि के अर्थ उद्भव में बहुत ही साम्यता है। यथा आधुनिक जगत में रिसर्च की महत्ता अनुसंधान के वैज्ञानिक प्रविधियों की श्रेष्ठता के कारण है, वैसे ही ऋषित्व भी मन्त्रद्रष्टृत्व से ही है।मन्त्र के प्रकटीकरण में साक्षात्कार दृष्टि की  प्रधानता से अपरिहार्यता है।

कोरोना काल में विश्व की विशाल आबादी वाले वाले भारत देश में विकसित देशों की तुलना में संक्रमण की विनाशकारी आशंकाओं को मिथ्या साबित कराने में योग और आयुर्वेद की महती भूमिका रही है। यद्यपि योग और आयुर्वेद भारत की आत्मा में सदा से रचे बसे हैं, लेकिन गिने चुने लोग आत्मा की आवाज सुन पाते हैं। योग और आयुर्वेद को आधुनिक जीवन शैली में सर्वस्वीकार्यता से प्रतिष्ठापित करने वालों गणमान्य जनों  में  बाबा रामदेवजी और आचार्य बालकृष्ण जी प्रथम पंक्ति में विराजमान हैं। विश्व में योग और आयुर्वेद पर काम करने वाली अनेकों शख्सियत रही हैं परंतु योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में बृहत क्रांति लाने वालों में बाबा रामदेवजी और आचार्य बालकृष्णजी अग्रणी हैं

बाबा रामदेवजी को यह श्रेय आज सारा संसार दे रहा है कि उन्होंने योग को आम आदमी के प्रयोग में शुमार किया है। योग के आसनों से तो फिर भी आमतौर पर लोग परिचित थे लेकिन प्राणायाम  तो वर्ग विशेष तक ही सीमित था। प्राणायम को किचन से लेकर पार्कों तक लेजाने वाले बाबा रामदेव जी के महत्तर योगदान को कदापि कमतर नहीं आंका जा सकता है। लगभग वर्ष 2000 से  टेलीविजन पर  बाबा रामदेव जी  योग के अभिनव प्रयोग आम जनमानस के लिए आकर्षण के प्रमुख केंद्र बन गए थे।

विश्व की 18 फीसद आबादी वाला भारत अन्यों देशों की तुलना में कोरोना महामारी के संकट से लंबे काल तक निपटा भी औसतन मृत्यु दर डेढ़ प्रतिशत से भी कम रखने में भी सफल रहा है। इस सफलता का रहस्य है योग और आयुर्वेद को ही जाता है। योग और आयुर्वेद द्वारा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और वायरस के बखूबी निस्तारण की भूमिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सराहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योग और आयुर्वेद को दुनिया में व्यवहार स्तर पर गर्मजोशी से अंतर्राष्ट्रीय पहचान हेतु विश्व योगदिवस के निर्धारण की संयुक्तराष्ट्र के मंच से कालजयी मांग की  थी। जिसका अनुमोदन ससम्मान वैश्विक नेतृत्व ने किया था।

कहा जाता है कि योग के पीछे आयुर्वेद अपने आप चला आता है। अतः भारत सरकार ने आयुष विभाग का दायरा बढ़ाकर आयुष मंत्रालय का दर्जा दिया है।इसमें योग , आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, और होम्योपैथी शामिल है।

आयुष मंत्रालय ने कोरोना काल में  प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले नुस्खों और औषधियों का जमकर प्रचार किया। पहली बार किसी महामारी के खात्मे के लिए योग और आयुर्वेद को चिकित्सा हेतु आधिकारिक रूप से मान्यता दी गयी। साथ ही आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन हेतु प्रोटोकॉल का उल्लेख किया है।

कोरोना संक्रमण से उपजे संकट में पतंजलि की कोरोलिन प्रतिरोधक क्षमता में बहुत ही कारगर सिद्ध हो रही है। WHO द्वारा ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना के लिए भारत को चुनना योग और आयुर्वेद के लिए नए मील के पत्थर सिद्ध होगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेद दिवस 13 नवम्बर,2020 को दो आयुर्वेद संस्थान 1- आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान, जामनगर 2- राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर  देश को समर्पित किए।

दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्डइंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी  के शोध द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि  अश्वगंधा ऐसे प्राकृतिक तत्त्व हैं जिनमें अद्भुत प्रतिरोधक क्षमता है।

कुछ साल पहले तक जूस का मतलब फ्रूट जूस होता था। लेकिन अब आंवला,गिलोय, एलोवेरा, तुलसी,लोकी, करेला आदि के जूस की भी भरमार  है। आयुर्वेद औषधि च्यवनप्राश प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत कारगर है। संक्रमण काल में काढ़ा  सेवन  का भी क्रम अनवरत बना रहा है।तुलसी , अश्वगंधा, ,हल्दी , गिलोय , कालीमिर्च और लौंग की मांग के नित नए रिकॉर्ड कायम किए। काढ़ा भारत के हर नागरिक का जरूरी राष्ट्रीय पेय हो गया था।

वस्तुतः योग और आयुर्वेद प्राकृतिक और कृत्रिम वायरस का  परम निदान  भी है और समाधान भी।

-डॉ.कमलाकान्त बहुगुणा


 

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तान की सक्रियता और पाकिस्तान से पुराना गठजोड़



किसान आंदोलन में भिंडरावाले के पोस्टर और खालिस्तान के नारे क्यों लग रहे हैं? साथ ही भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वालों की अचानक खेती में दिलचस्पी क्यों जगी?अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति  ही इस रोग की जड़ है।यह फूट डालो की नीति मात्र अंग्रेजों की  राजनीतक ही नहीं थी अपितु बौद्धिक प्रयास भी उनके समानांतर से जारी थे। सिखों को हिंदुओं से अलग करने के लिए ही अंग्रेजों ने जॉन अर्थर मैकालिफे को सिखों का इतिहास लिखने की जिम्मेदारी सौंपी। इतिहास लेखन में उद्दीपन फूट डालना ही था। बहुत ही सुनियोजित शैली में इस धारणा को गढ़ा गया कि सिख विचारधारा या फिर सिख जीवन दर्शन इस्लाम और ईसाइयत के अधिक निकट है न कि सनातन हिंदू धर्म के।

मुट्ठी भर अंग्रेजों ने यूं ही भारत को अपने कब्जे में नहीं किया था, बल्कि उन्होंने पूरी तरह से रीसर्च कर  बहुसंख्यक हिंदुओं  की हर तरह की कमजोरी को भांप कर अपने षड्यंत्रों को अमलीजामा पहनाया था। यदि कदाचित् 1857 के बाद बहुसंख्यक हिंदुओं द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष खड़ा होजाए तो  उसके मुकाबले  के लिए सिख  और मुस्लिम का  गठजोड़ खड़ा किया जा सके।

स्वतंत्रता से पहले  अंग्रेजों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की लंबी उम्र हेतु सिखों और हिंदुओं के बीच लंबी खाई खोदने  का काम किया गया था। आज भारत को एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरने से रोकने के लिए वामपंथी -टुकड़े -टुकड़े गैंग और इस्लामिक कट्टरपंथी गैंग सिखों और हिंदुओं में खाई खोदने का काम कर रहे हैं।ताकि सिखों और हिंदुओं की समरसता को विषाक्त किया जा सके।

सिखों को यह याद जरूर रखना चाहिए कि सिख गुरुओं ने अपने प्राणोत्सर्ग हिंदुओं के विरुद्ध नहीं किया था। सिख मुस्लिम एकता रूपी चालबाजी की  असलियत को 1947 में बड़ा झटका का लगा था, जब मुस्लिम लीग ने हिंदुओं के साथ सिखों का बड़ा नरसंहार किया था। इस मानवीय त्रासदी की कहानी का वर्णन खुद शिरोमणि गुरुप्रबंधक कमेटी द्वारा प्रकाशित मुस्लिम लीग अटैक ऑन सिख्स एंड हिंदूज इन द पंजाब में  है।

अवश्य विचारणीय है कि खालिस्तानियों की आंखों में पट्टी क्यों बंधी है? पाकिस्तान में सिख लड़कियों को भी अगवा किया जाता है।उस पाकिस्तान के प्यादे बने हुए हैं जहां सिखों का जीना बेमुश्किल है।ये नागरीकता संशोधन कानून के भी खिलाफ हैं।पाकिस्तान के षड्यंत्र ने ही कनाडा,अमेरिका ब्रिटेन आदि यूरोपीय देशों से खालिस्तानी मूवमेंट द्वारा इंटरनेट पर 2020 अलग खालिस्तान की मांग केे लिए जनमत संग्रह का अभियान चलाया जा रहा था।

किसान अन्नदाता हैं। किसान की समस्या राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक की समस्या है। समाधान के लिए संवाद सबसे महत्त्वपूर्ण उपक्रम है।परंतु जिद में तब्दील आग्रह लोकतांत्रिक गरिमा को ठेस पंहुचाता है। यह आग्रह सरकार की मानेंगे  नहीं और सुप्रीम कोर्ट की सुनेंगे नहीं अवश्य किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी तत्त्वों की सक्रियता  का  सत्य आभास करा  रहा है।

                                       - डॉ. कमलाकान्त बहुगुणा

 

 

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

संभावनाओं के अपार द्रष्टा स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण

संभावनाओं  के अपारद्रष्टा  स्वामी रामदेव  और आचार्य बालकृष्ण 

गुरुकुल परम्परा से अधीत स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण आधुनिक भारत में उन गिने चुने शख्सियतों में से हैं जिन्होंने भारत के आम आदमी की तरह से सामान्य परिवेश में  पलते बढ़ते और सीखते हुए हर व्यक्ति में अपार  संभावनाओं के सूत्र की व्याख्या हेतु अपने जीवन का गतिमान उदाहरण प्रस्तुत किया है।

जीवन में सबसे अहं और क्रांतिकारी क्षण है अपने अस्तित्व की प्रकृति से परिचय बोध इसी क्षण का नाम है आत्मजगारण Self awareness. हॉवर्ड यूनिवर्सिटी और गुरुकुल में अंतर करने की प्रवृत्ति में समीक्षा की आवश्यकता जरूर जान पड़ रही है। अंग्रेजों से पहले का भारत मार्केटिंग के उन रहस्यों से अनभिज्ञ था जिसमें श्रम की अपेक्षा सपनों को बेचना होता था। इच्छन्ति देवा: सुन्वन्तं  स्वप्नाय स्पृहयन्ति यन्ति प्रमादमतन्द्राः  वैदिक साहित्य  में यज्ञ का अर्थ कर्मशीलता है। सपनों की जगह यथार्थ धरातल की स्वीकार्यता ही वैदिक संस्कृति  के उद्देश्ययों में अन्यतम है।स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों ही विभूतियाँ संघर्षों को पराजित कर कई तरह  के विषपान के उपरांत ही कुन्दन बने हैं। उनके संघर्षों के साक्षी  सदा  कर्म   के प्रति  इनकी अखण्डता को प्रमुखता से श्रेय देते हैं।

दोनों ही विभूतियां उस उत्कर्ष तक अपने आयाम को प्रतिध्वनित कर चुके हैं जहां साधारण तो क्या विशेष भी अवशेषों में शुमार हो जाए। हो सकता है कंडीशनिंग के पक्षपाती इसे उनके प्रारब्ध को श्रेय दें परन्तु पेरेडाइम की प्रवृत्ति वाले जानते हैं कि विचारों का उदयन ही कर्म की आधारशिला है। कर्म की अखंडता आदत का निर्माण और आदत की परिपक्वता चरित्र की महापूँजी सृजित करती है। यही वह महान सम्पदा नियति की नींव है।

भारतभूमि  ज्ञान और भक्ति की उर्वरा भूमि है। एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति   में यह भाव विशेषतया निहित है कि हम दूसरों को सुधारने प्रवृत्ति से मुक्त नहीं होसकते हैं सच्ची मुक्ति तो स्वीकार्यता में है। स्वीकार्यता ही सुधार की परम कोशिश है। जहां स्वामी रामदेव नेतृत्व गुणों से पूर्णतया अभिव्यंजित हैं  वहीं आचार्य बालकृष्ण प्रबंधन कौशल के अनौखे शिल्पकार हैं।

सफलता का मन्त्र  है  स्थायित्व और विकास । स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण इस मंत्र को अक्षरश:  जी रहे हैं। वे निरंतर प्रवाहित हो रही जल की  धारा सदृश बिना थके मानवता की सुरक्षा और मार्गदर्शन हेतु सक्रिय भी हैं और अपडेट व अपग्रेड के नवीनीकरण हेतु प्रयत्नशील भी। जल की एक बूंद समस्त ब्रह्मांड की व्याख्या करने में सक्षम भी है और पर्याप्त भी । जल नरम भी है और लचीला भी।परंतु  पानी की एक बूंद के गिरने से कठोर शिलाएं भी टूट जाती हैं। पानी की आवाज जीवन की आवाज है । हमारे अस्तित्व की प्रतिध्वनि है। पानी का सतत प्रवाह पत्थर को भी अपने अनुकूल बना देता है।

दोनों ही विभूतियों का जीवन नदी की तरह है। नदी की जब भी बाधा से भेंट होती है नया रास्ता निर्मित कर लेती है।जल नरम भी है और विनम्र भी ।लेकिन सबसे अधिक शक्तिशाली और सबसे अधिक टिकाऊ है। मानवता महासमुद्र है।समुद्र की कुछ बूंदे गंदी हों तो सारा समुद्र गंदा नहीं हो जाता है। यह प्रवाहमानता ही संभावनाओं के लिए परम द्वार और अपरिमित स्रोत है। यही वैशिष्ट्य इन विभूतियों में पदे-पदे अभिव्यंजित होता है।

                                        -डॉ कमलाकान्त बहुगुणा

 

 

 

 

सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु

स्मृति और कल्पना

  प्रायः अतीत की स्मृतियों में वृद्ध और भविष्य की कल्पनाओं में  युवा और  बालक खोए रहते हैं।वर्तमान ही वह महाकाल है जिसे स...